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वि. सं. १६३४ में पोरवाड ज्ञातीय संघवी के वंशज श्रेष्ठि मेहाजाल ने प्राचार्य श्री विजयसेनसूरिजी द्वारा कराई थी । " मीरपुर सिरोही से प्रणादरा जाते हुए, मोटर बस मार्ग पर मेडा श्राता है, जहाँ से मीरपुर तीर्थ ४ मील दूर है । यह एक प्राचीन तीर्थस्थान है जहाँ पहाड़ के नीचे सुन्दर चार मंदिर हैं । देलवाडा श्राबू के सदृश, इन मंदिरों का स्थापत्य माना जाता है । इसका दूसरा नाम हमीरगढ है ।
प्रारासरण (कुम्भारीयाजी ) तीर्थ :
श्राबू प्रदक्षिणा का प्रारासरण (कुम्भारीयाजी) तीर्थ, श्राबूरोड से करीब १६ मील है और गुजरात राज्य के अन्तर्गत आता है । इसका अति प्राचीन नाम 'कुन्ती नगरी' था । कहा जाता है कि वि. सं. ३७० से ४०० के बीच में कभी यहां ३०० मन्दिर थे । इस समय पांच मन्दिर ११वीं सदी के निर्मित हैं। सबसे प्राचीन लेख यहां पर वि. सं. १११० का है । १. सबसे बड़ा ऊंचा और विस्तृत मन्दिर भगवान् श्री नेमिनाथजी का है जिसके बाह्य भाग में देव देवियों, यक्ष यक्षणियों की बड़ी सुन्दर प्राकृतियाँ खुदी हुई हैं तथा मन्दिर के भीतर, श्रृंगार चौकी, रंग मण्डप और सभामण्डप है और गर्भागार में मूलनायक भगवान् श्री नेमिनाथजी की सुन्दर चित्ताकर्षक मूर्ति विराजमान है । वि. सं. १२१४ से १५७५ के लेख मिलते हैं किन्तु यह मन्दिर प्रारासरण के मंत्री पासिल का वि. सं. ११७४ के करीब निर्माण कराया जाना पाया जाता है । २. दूसरा कला और कारीगरी का मन्दिर भगवान् श्री महावीर स्वामी का है । इस मन्दिर की कलाकृतियां भव्य और अद्भुत हैं जिनकी समानता देलवाड़ा श्राबू के जिन मन्दिरों से की जा सकती है । स्तम्भों पर सुन्दर नृत्य मुद्राओं में देव देवियों की मूर्तियाँ अंकित हैं और गंभारा में विचित्र बारीक खुदाई की हुई है । ३. श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर भी बहुत आलीशान है । सभामण्डप में दो बड़े काउस्सग्गिये हैं जिन पर वि. सं. ११०६ के लेख हैं तथा चार स्तम्भों और तोरणों की कलाकृतियाँ प्रति मनोहर हैं । वि. सं. १६७५ में इसकी प्रतिष्ठा हुई तब द्वारों और घुमटों को कलायुक्त बनाया गया था । ४. श्री शान्तिनाथजी के मन्दिर का स्थापत्य, स्तम्भों की रचना, तोरण और छत भी महावीर स्वामी के मन्दिर के सदृश है । प्राचीन लेख वि. सं. १९१० और ११३८ के हैं जिससे पाया जाता है कि यह मन्दिर कुम्भारियाजी के मन्दिर में सबसे प्रथम निर्माण हुआ है । ५. श्री सम्भवनाथजी का मन्दिर, अन्य मन्दिरों से कुछ दूरी पर है । कोई लेख इसके निर्माण के विषय में नहीं मिलता। किसी धनी पुरुष का बनाया हुआ करीब १००० वर्ष प्राचीन मन्दिर है जबकि आरासण और चन्द्रावती नगरी की जाहो-जलाली थी । कुम्भारियाजी के मन्दिर, गुजरात के मंत्री विमलशाह ने निर्माण कराये हैं । इन मन्दिरों को अलाउद्दीन खिलजी ने विध्वंस किये थे और वि. सं. १६७५ में जीर्णोद्धार हुआ है ।
अर्बुदाचल प्रदक्षिणा से ७२ गांवों के जिनमें प्रसिद्ध व प्राचीन जैन तीर्थों का उपरोक्त वर्णन किया है। जिन मन्दिर हैं । कुल ७१ जिनमन्दिरों के लेखों का संपादन और अनुवाद इतिहास - प्रेमी स्व. मुनिराज श्री जयन्तविजयजी की पुस्तक - प्रर्बुदाचल प्रदक्षिणा जैन लेख संदोह, प्राबू भाग-५ में मिलता है । इनमें वि. सं. ७४४ के प्राचीन लेख को छोड़कर, कुल लेख वि. सं. १०१७ से १९७७ तक के बीच के हैं । यह पुस्तक वि. सं. २००५ वीर संवत् २४७५ में श्री यशोविजयजी जैन ग्रन्थमाला भावनगर से प्रकाशित हुई है ।
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१. 'महापुरुष मेहाजाल नाम, तीर्थ थाप्यु अविचल धाम' [पं. शीलविजयजी रचित तीर्थमाला ] २. 'जैन तीर्थोनो इतिहास' पू. ३३० [ लेखक : त्रिपुटी महाराज ]
શ્રી આર્ય કલ્યાણ ગૌતમ સ્મૃતિગ્રંથ
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