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________________ शान्तिसूरिजी का चित्र रखा हुअा है जहाँ इनका सन् १९४२ ई. में स्वर्गवास हुआ था। अचलगढ़ के नीचे, तलहटी में, तीसरा मंदिर भगवान श्री शान्तिनाथका, विशाल और कलामय है जिसको गुजरात के जैन राजा कमा निर्माण कराया था। इस मंदिर को 'कुमार विहार' भी कहा जाता है । यहाँ की शिल्पकला सुन्दर और आकर्षक है । चन्द्रावती, मुगथला और जीरावला तीर्थ : आबूरोड से ४ मील, दक्षिण में विध्वंस तीर्थ चन्द्रावती है जहाँ कि इस मन्दिर के खण्डहर ही विद्यमान हैं। ईसा के पूर्व चौथी शताब्दी से सन् १६८६ ई. तक का इतिहास जैन साहित्य में उपलब्ध है। प्राचीन जैन मन्दिरों के भग्नावशेषों में, कलामय शिखर, गुम्बज, स्तम्भ, तोरण, मण्डपादि ही पाये गये थे जिसमें से भारतीय कला के श्रेष्ठ नमूनारूप एक ही पत्थर में दोनों तरफ श्री शंखेश्वर देव की अद्भुत अंलकारों से सुशोभित मूर्ति है।' आबूरोड से ४ मील पश्चिम में, मुगथला (मुड स्थल) तीर्थ है जहाँ पर छमावस्था में, अपनी ३७ वर्ष की आयु में अर्बुद भूमि की अोर श्री महावीर भगवान् के विहार करने का शिलालेख मिला है और उसी वर्ष में यहाँ मन्दिर राजा पूर्णराज ने भगवान् महावीर का बिम्ब निर्माण करा कर श्री केशीमुनि से प्रतिष्ठा कराई थी।२ आबूरोड से लगभग २८ मील की दूरी पर विख्यात जीरावला तीर्थ है जहाँ पर ग्राम कोडिनार की गुफा से निकली हुई सन् २०० ईसा पूर्व (वि. सं १४३) वर्ष की प्राचीन मूर्ति भगवान् पाश्वनार्थ की है जो सेठ अनरासा को मिली थी और जिन्होने ही मिलने के ४ वर्ष बाद जीरावला ग्राम में स्थापित कराई थी। इस मन्दिर का वि.सं. २९३, ५६३, ९५१, में जीर्णोद्धार हुए तथा कुछ जैनाचार्यों और जैन श्रावकों ने सन् ५०६ ई. से १३२४ ई. के बीच में यहाँ पर अद्भुत चमत्कार देखे । वर्तमान में मूलनायक तरीके पर, भगवान् श्री नेमिनाथजी की मूर्ति है । इस तीर्थ का प्राचीन नाम (जीरा पल्ली) जीरिका पल्ली मिलता है। चारों ओर पर्वतमालाओं से आवेष्ठित है। वि. सं. १३५४ से १८५१ के लेख हैं। उनमें से सं. १४८३ के शिलालेख में अंचलगच्छ के प्रसिद्ध मेरूतुगसूरि की पट्टधरण गच्छाधीश्वर श्री जयकीर्तिसूरि का वर्णन है । दूसरा इसी सं. का तपागच्छ नायक श्री देवेन्द्रसूरि पट्टे श्री सोमसुन्दरसूरिजी, मुनि सुन्दरसूरि, श्री जयचन्दसूरिजी, श्री भुवनसुन्दर सरि का उल्लेख है। पिंडवाड़ा, नाणा, दियाणा, नादिया व बामणवाडाजी : आबूरोड से २८ मील दूर, और सिरोहीरोड रेल्वे स्टेशन से लगभग १३ मील पर, पिंडवाड़ा आता है, पिंडवाड़ा 'जैन पुरी' कहलाती है। और यहाँ पर श्री महावीर भगवान् के बावन जिनालय वाले मन्दिर में, धातु के दो बड़े काउसग्गिये (ध्यान में खड़ी जिन मूर्तियां) प्रति अद्भुत और अनुपम हैं। वस्त्र की रचना तो कमाल की है और एक पर वि. सं. ७४४ का प्राचीन खरोष्टि लिपि का लेख है । गुप्तकालीन कला के सुन्दर नमूने जो कि वसन्तगढ़ के प्राचीन किले से लाये हुए हैं, इस जैन मन्दिर में मिलते हैं। नाणा, दीयाणा, नादिया, वामणवाडाजी और अजारी मारवाड़ की छोटी पंचतीर्थों में आती है। इस प्रदेश में कहावत प्रसिद्ध है कि "नाणा, १. मुनि ज्ञान सुन्दरजी : भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास (इ. १०२७ से १०२६) २. पूर्व छद्मस्थकाले बुद भुवि यमिनः कुर्वतः सद्धिहारं सप्त त्रिशोच वर्षे वहति भगवति जन्मतः कारितार्हच्च श्री देवार्यस्य यस्यो ब्लसदुयलमयी पूर्ण-राजेन राज्ञा श्री केशी सुप्रतिष्ठि, स जयति हि जिनस्तीर्थ मुस्थलस्य । १४२६ स्व जयन्तविजयजी 'अर्बुदाचल प्रदक्षिणा जैन लेख संदोह । लेखांक ४८ न्म तः कारितार्हच्च श्री देवार्यस्य यस ठ, से जयति हि जिनस्तीर्थ म यजी ... अर्बुदाचल આ આર્ય કયાણા ગૌતમ સ્મૃતિગ્રંથ એ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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