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सरिजी ने बाइसवें तीर्थंकर भगवान श्री नेमिनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई थी। इस अवसर पर ४ महाधर, १२ मांडालिक ८४ राणा और ८४ जातियों के महाजन और अन्य लोग एकत्रित हुए थे। इस मंदिर की परिक्रमा नौ चौकी, रंगमण्डप और हस्ति-शाला की कारीगरी की शैली विमल वसहि की शैली से भिन्न और बहुत बारीक मानी जाता है। इसमें द्वारका नगरी, कृष्णलीला, देरानी जेठानी के गोखले (झरोखे), रंगमंडप के स्तंभ तोरण और केन्द्र के नन्हे नन्हे पुष्पोंसे पाच्छादित झूमक, एवं रंगमंडपके दक्षिण-पश्चिम कोने के पास की छत पर, कमलकी पंखुड़ियों पर नतिकाओं का सुन्दर पट्ट दर्शनीय है । अन्तिम पट्ट भारतीय नाट्यकला का एक अद्वितीय नमूना है जिसमें प्रत्येक नर्तकी का भिन्न-भिन्न हाव-भाव और अंग मरोड, संगमरमर के पाषाण पर परिलक्षित होता है। छतों पर कमल के पुष्पों, विविध प्रकार के हाथी, घोड़े सिंह, स्त्री पुरुष, देवी देवताआदि की कलाकृतियाँ, भावभीने और मनमोहक ढंग से प्रदर्शित की गई हैं और वे स्थिर नहीं दिखाई देकर, सक्रिय प्रतीत होती हैं । इसके अतिरिक्त, राज दरबार, राजकीय सवारी, वरघोड़ा, बरात, विवाहोत्सव आदि के कई प्रसंग, हूबहू अंकित किये गये हैं। नाटक, संगीत, युद्ध संग्राम, पशु पक्षी, संघ यात्रा, ग्वालोंका जीवन आदि दृश्यों में तत्कालीन राजकीय, सामाजिक, व्यापारिक और व्यावहारिक जीवन की प्रत्यक्ष झांकी नजर आती है। जैन और वैष्णव दोनों हो धर्मों की महत्वपूर्ण घटनाओं को शिल्पकार ने सजीव रूप दिया है। देरानी जेठानी के गोखलों में, जिसको नौ लखिये गोखले भी कहते हैं, गहन और बारीक टांकी से खोदकर निकाले गये पत्थर के चूरे के बराबर स्वर्ण तोल कर दिया गया। जनश्रुति के आधार पर वस्तुपाल और तेजपालकी धर्मपत्नियों के निर्माण करवाये हुए, ये गवाक्ष हैं किन्तु ऐतिहासिक प्रमाण से तेजपाल की दूसरी स्त्री सुहंदा देवी की स्मृति में ये बनाये गये हैं।
विचित्र शैली का यह मंदिर, विमल वसहि के निर्माण काल से २०० वर्ष पश्चात्, मंत्री तेजपाल की धर्मात्मा पत्नी अनुपमा देवी की प्रेरणा से बना था। शोभनदेव सूत्रधार ने सात वर्ष में इस मंदिर का निर्माण किया था। इस मंदिर की पश्चिम दिशा में बड़ी हस्ति-शाला है जिसमें प्राभूषणों एवं रस्सियों से सुजज्जित १० हाथी श्वेत संगमरमर के दर्शनीय हैं। अन्य मंदिर
उपरोक्त विश्वविख्यात दो मंदिरों के अतिरिक्त, पीतलहर भगवान् ऋषभदेवका मंदिर, भगवान् महावीर स्वामी का मंदिर, और कारीगरों का मंदिर (खरतर वसहि) हैं। पीतलहर मंदिर में भगवान् ऋषभदेव की १०८ मन वजन की मति है। कुछ शिलालेखों के आधार पर, इसका निर्माणकाल वि. स. १३७३ और वि. सं. १४८७ के बीच माना जाता है। इसका निर्माता, गुजरात का भीमाशाह गुर्जर था और वि. स. १५२५ में वर्तमान मूर्ति की प्रतिष्ठा अहमदाबाद के सुल्तान महमूद वेगडा के मंत्री सुन्दर और गदा ने बड़े धामधूम से कराई थी। इस मंदिर के अन्तर्गत, नववें तीर्थकर भगवान श्री सुविधिनाथ का बड़ा देवरा है जिसमें चारों ओर छोटी बड़ी मूर्तियाँ स्थापित हैं उसमें पुडरिक स्वामी को भी एक मूर्ति बहुत मनमोहक है ।
पीतलहर के पास ही २००-३०० वर्ष पुराना २४ वें तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी का छोटा मंदिर है जिसके बाहर, गहरे लाल रंग के विचित्र पुष्प, कबूतर, राज दरबार, हाथी घोड़े, नर्तक नतिकात्रों के दृश्य विचित्र हैं जिसको वि. सं. १८२१ में सिरोही के कारीगरों ने चित्रित किये हैं। इसका निर्माणकाल सं. १६३९ और १८२१ के बीच में होना कहा जाता है।।
શ્રી આર્ય કરયાણ ગૌતમ સ્મૃતિ ગ્રંથ
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