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________________ Niummmmmm.inmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmRRIAAAAAAAAAAAAAAAAAw[२३] संघपति ने जब उन तीनों श्लोकों को भगवान् के सामने रखा तो अधिष्ठायक देव ने संघ की शान्ति के लिये सात गुटिकायें प्रदान की थी एवं यह निर्देश दिया था कि आवश्यकता पड़ने पर इन गुटिकायों का प्रयोग करें। (६) लोलपाटक (लोलाड़ा) नगर में सर्प के उपसर्ग होने से मेरुतुङ्गसूरिजी ने पार्श्वनाथ महामन्त्र यन्त्र से गभित 'ॐ नमो देवदेवाय' स्तोत्र की रचना की जिससे सर्प का विष अमृत हो गया। (७) संवत् १८८९ में मगसर वदी ११ के दिन बड़ौदा में प्राचार्य शान्तिसूरि को स्वप्न में भगवान ने प्रकट होने का कहा। शान्तिसूरि जी के कहने से सेठ ने जमीन खोद कर भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्राप्त की। प्रतिमा को सर्व कल्याणकारिणी होने के कारण कल्याण पार्श्वनाथ के नाम से बड़ौदा में मामा की पोल में प्रतिष्ठित किया गया है। ये थोड़े से महत्त्वपूर्ण प्रसंग आपके सामने रखे हैं। यदि आस्था रखें तो आप भी चमत्कृत हो जायेंगे। जमल्लीणा जोवा, तरंति संसारसायरमणंत । तं सम्वजीवसरणं, गंक्दु जिणसासणं सुइरं ॥ जिसमें लीन हो जाने से प्राणी अनन्त संसार-सागर को पार कर लेता है तथा जो सम्पूर्ण प्राणियों के लिए शरण के समान है, ऐसा जिन-शासन लम्बे समय तक समृद्ध रहे । जिणवयणमोसहमिणं, विसयसुह-विरेयणं अमिदमयं । जरमरणवाहिहरणं, खयकरणं सम्वदुक्खाणं । विषय-सुख का विरेचन करने, जरा मरणरूपी व्याधि को दूर करने तथा सभी दुःखों का नाश करने के लिए जिन-वचन अमृत समान औषधि है। जय वीयराय ! जयगुरू ! होउ मम तुह पभावओ भयवं । भवणिब्वेओ मग्गाणुसारिया इट्ठफलसिद्धी ॥ हे वीतराग ! हे जगद्गुरु ! हे भगवान् ! आपके प्रभाव से मुझे संसार से विरक्ति, मोक्ष-मार्ग का अनुसरण और इष्ट-फल की प्राप्ति होती रहे। આર્ય કયા ગોતમ સ્મૃતિરાંથી એS Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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