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हर्षसागर-रचित राजसी साह रासका सार
-श्री भंवरलाल नाहटा
जैन कवियों का रास साहित्य बहुत ही विशाल है। बारहवीं शती से वर्तमान समय तक लगभग ८०० वर्षों में विविध प्रकार की रचनाएं प्रचुर प्रमाण में लोक भाषा में रची गई हैं, जिनमें ऐतिहासिक रासों का महत्त्व भाषा और इतिहास उभय दृष्टि से है। ऐतिहासिक रासों की परम्परा भी तेरहवीं शती से प्रारम्भ हो जाती है । कुछ वर्ष पूर्व इनके प्रकाशन का कुछ प्रयत्न हुआ था पर अब इनका प्रचार और महत्त्व दिनोंदिन घटता जा रहा है। इसलिए मूलरासों का प्रकाशन तो अब बहुत नज़र नहीं आता। इसलिए अपने "ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह" के प्रकाशन बाद जितने भी ऐतिहासिक रास या गीत उपलब्ध हये हैं उनका संक्षिप्त सार प्रकाशित करते रहने में ही हम संलग्न हैं।
जैन रास साहित्य की शोध स्वर्गस्थ मोहनलाल दलीचंद देसाई ने जिस लगन और श्रम के साथ की वह चिरस्मरणीय रहेगी। उन्होंने, गुर्जर जैन कवियों की ३ भागों में हजारों रचनाओं का विवरण प्रकाशित करने के साथ अनेक महत्त्वपूर्ण रासों की नकल अपने हाथ से की थी। जिनमें से एक संग्रह बड़ौदा से प्रकाशित होने वाला था। पर उनके स्वर्गवासी हो जाने से उनकी इच्छा पूर्ण न हो सकी। उनकी हाथ की की हुई प्रेस कोपियां व नोंध श्रीयुत मोहनलाल चोकसीने जितने भी उन्हें प्राप्त हो सके, बम्बई के श्री गोडीजी के मंदिरस्थ श्री विजयदेव सरि-ज्ञानभंडार में रख छोड़े हैं। कुछ वर्ष पूर्व श्रीयुत काकाजी अगरचंदजी के बम्बई जाने पर उपयोग करने व प्रकाशन के लिए सामग्री का थोड़ासा अंश वे बीकानेर ले आये थे, जिनमें से हर्षसागररचित साह राजसी नागडा का रास भी एक है। इस रास का उल्लेख जैन-गुर्जर कवियों के तीनों भागों में नहीं देखने में प्राया। रास की प्रतिलिपि अंत में देसाई जी के किये हुये नोट्स के अनुसार अनंतनाथभंडार नं. २६२२ के चोपड़े से उन्होंने ता. २७-९-४२ को यह कृति उद्धृत की थी। राजसी रास के समाप्त होने के बाद इसमें उनकी दो पत्नियों के सुकृत्यों का वर्णन भी पीछे से जोड़ा गया है। और उसके पश्चात् हरिया शाह के वंशजों के धतलंभनिकादि वर्णन करने वाला एक रास है। जो अपूर्ण रह गया है। दोसई जी के संग्रह में एक अन्य ऐतिहासिक रास ठाकुरसी साह रास (अपूर्ण) भी नकल किया हुआ है. जिसका संक्षिप्त सार अन्य लेख में दिया जायगा।
STATE श्रीमार्य उध्यागीत
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