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अंचलगच्छ-एक परिचय ( अंचलगच्छ- इस गच्छका अपर नाम 'विधिपक्ष' है ) इस नामकी स्थापना संवत ११६९ में उपाध्याय विजयचंद्र, आर्यरक्षित सूरिसे, विधिमार्ग के पालनका पक्ष रखनेसे हुई, फिर श्रावकोंके मुहपत्तिके स्थान पर वस्त्रका अंचल (छोर) से वंदनादि के विधानके कारण इसका नाम अंचलगच्छ प्रसिद्ध हुआ । आज भी कई आचार्य व साधु इस गच्छमे विद्यमान हैं । कच्छ व काढियावाड जामनगरादिमे इस गच्छके श्रावकोंके घर हैं।
इस गच्छके अनेक विद्वानोने उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण ग्रंथोंका निर्माण किया व हजारों प्रतिमाएं उपदेश दे कर श्रावकोंसे प्रतिष्ठित करवाई । इस गच्छकी मान्यताओंका पता शतपदोमे...इस गच्छका संक्षिप्त इतिहास भी पाया जाता है । विशेष जानने के लिए 'म्होटो पट्टावली' - शा सोमचंद धारशो-(कच्छ) अंजारसे प्रकाशित व 'जैन गुर्जर कविओ' (भा. २) के परिशिष्टमें प्रकाशित - अंचलगच्छ पटावलीका सार देखना चाहिये।
- श्री अगरचंदजी नाहटा (यतीन्द्रसूरि अभिनंदन प्रथ)
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આર્ય દાદicખ સ્મૃતિ ગ્રંથો
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