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हजारीमल बांठिया
किस समय वे कहां थे ? कब-कब उनका स्वास्थ्य कैसा रहा! कब कहां गये, कौनसे विशिष्ट कार्य किये, उनकी क्या इच्छा व योजना रही, उनकी रुचि एवं प्रकृति कार्य पद्धति आदि अनेक बातों पर इन पत्रों द्वारा । प्रकाश मिलता है । अतः प्राप्त पत्रों के कुछ प्रावश्यक अंश यहां उदृत किये जा रहे हैं। वास्तव में इन समस्त पत्रों तथा ऐसे ही मुनिजी के लिखे अन्य पत्रों का संग्रह ग्रन्थ प्रकाशित होना आवश्यक है।
अहमदाबाद २३-११-३७
आप जानते न हों तो जान रक्खें कि मेरा किसी गच्छ या संप्रदाय के साथ न राग है न द्वेष है। मैं तो गुणानुरागी हूं और सब गच्छों को और सब संप्रदायों को समान भाव से देखता हूं। हाँ ऐतिहासिक दृष्टि से और प्रमाणों से जो मुझे ठीक मालूम दे उसका विधान करना चाहता हूं। सच्ची ऐतिहासिक दृष्टि हमें सम्यग्ज्ञान प्रदान करती है । सांप्रदायिक मोह हमें मिथ्या ज्ञान की अोर और भी लेजा सकता है । सुज्ञेषु किमधिकम् ।
हमारा ध्येय तो गच्छ संप्रदाय आदि के परे रहकर जैन धर्म के गौरवशाली पुरुषों का जगत् में यश फैलाने का है। वह किसी भी गच्छ का हो या संप्रदाय का हो ।
बम्बई १४-६-३८
'राजस्थान' में आपका लेख पढ़ा । प्रसन्न हुअा। राजस्थान के योग्य आपके पास बहुत सामग्री है उसे निकलवाइये । मैं तो यहां पर ग्रन्थों के सम्पादन में फंसा हुआ हूं। खरतरगच्छ के प्राचार्य और विद्वानों की वे कृतियाँ जो इतिहासोपयोगी हों तथा सार्वजनिक दृष्टि से साहित्यिक विशेषता रखती हों, उन्हें हम प्रगट करना लाभदायक समझते हैं। यहाँ ओनरेबुल मिस्टर मुन्शी के प्रयत्न से एक रिसर्च इन्स्टिट्यूट खोलने का प्रयत्न हो रहा है। इसका संचालन करने में हमारा विशेष योग रहेगा और इसलिये हमको अभी यहाँ पर ही ज्यादा ठहरना पड़ेगा।
सावरमती, अहमदाबाद १७-११-३८
यहाँ पर कल परसों दो दिन हेमचन्द्र जयन्ति निमित्त उत्सव है उसी प्रसंग के लिये पाना पड़ा है आप जानते ही हैं कि ऐसे ग्रन्थों का संशोधन कोई पाठ पन्द्रह दिन का थोड़ा ही काम है । उसके पूरा होने में कोई तीन चार महिने चाहिये । सिबाय हमारे हाथ में तो बीसियों काम है वह प्रति मोहन भाई के पास योंहीं
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