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प्रेरणामति प्राचार्य जिनविजयजी
प्राचार्य श्री जिनविजयी नी इतिहास पट्रताथी आकर्षाईने शान्तिनिकेतन जइ तेमनो शिष्य बन्यो भने विशुद्ध इतिहास अने पौराणिक इतिहास वच्चेनु अतर जाणवा भाग्यशाली थयो तेरो ते काले एटले के इ. स. १६३५ मां अमने आवश्यकचूणि भणावता, ए पहेला पण तेमनो परिचय जैन साहित्य संशोधक द्वारा परोक्षरीते हतो ज । अने ज्यारे श्री पू० ५० बेचरदासजीना धरे रही अमदाबाद मा भणवानु शरु कयु', त्यारे अमदाबाद मां सौ प्रथम बार १९३० मां ज तेमनो साक्षात् परिचय थयेलो। एनेज परिणामे ज्यारे पू० ५० बेचरदासजी जेलमां गया त्यारे अन्य गुरुनी शोधमा शान्तिनिकेतन जवान बन्यू पा रीते अाधुनिक जैन समाजना त्रण विख्यात पडितोमांथी बीजा श्री जिनविजयजीने पण गुरु बनाववानु सभाग्य सांपड्य।
श्री पं० बेचरदासजीनी प्रतिष्ठा ते काले अने आज पण जैन आगमो अने तेनी प्राकृत भाषाना अद्वितीय विद्वान तरीके छे । त्यारे प्राचार्य श्री जिनविजयजीनी प्रतिष्ठा जैन इतिहासना अद्वितीया पंडित तरीके छे। तेमनी समग्र कारकीर्दीनो ज्यारे विचार करू छु त्यारे तेमनी इतिहास दृष्टि ज तेमना जीवनमा समग्न रीते व्याप्त थई गई जणाय छ । तेस्रो साहित्यमा संस्कृत अपभ्रंश के जूनी हिन्दी राजस्थानी के गुजरातीमां कार्य करे छे पण तेमनु प्रथम ध्येय ए बधी भाषा साहित्य इतिहासना अंकोडा मेलववामां केवी रीते उपयोगी थई पडे ए होय छे । पाथी ज आपणे जोई शकीये छीए के तेमणे ज्यारे पत्रकार तरीकेनी कारकीर्दी शरूरी त्यारे पण तेमणे सर्व प्रथम विदेशी विद्वानोए जैनधर्म अने साहित्य विषे जे कांई इतिहास दृष्टिए लस्यु होय तेनो परिचय अनुवाद या सार द्वारा बांचको समक्ष मूकवानु उचित मान्यु अने तेमणे जैन साहित्य संशोधक द्वारा पीरसेलू ते वाङमय प्राजे पण महामुल्छ ।
प्राचार्य जिनविजयजी ए एकले हाथे करेल सम्पादकोनी यादी एटली विस्तृत छे अने एटली वैविध्य पूर्ण छ के तेमांना घरणा पुस्तकोए तो इतिहास सज्यों के एम कहे जोइये। तेमांना घरणां एवा छे के ते ते विषयमां अपूर्व गणाय अने घणीवार ते एकमात्र होय । प्राचीन पुस्तकोना विद्वान संपादकोनी गणतरी करवामां आवे तो अने तेमां सौथी श्रेष्ठ अने आधुनिक सम्पादक शैली अपनावीने कार्य करनारा सम्पादकोने गणवामां आवे तो तेमां प्राचार्य जिनविजयजीनो क्रमांक प्रथम अने तेम ज्यारे हैं कहछु त्यारे ए अतिशयोक्ति नथी । एकेक ग्रंथना अनेक उत्तम कोटिना सम्पादको छे एकेक विषयना ग्रंथोना पण अनेक सम्पादको छे परण विविध विषयना अने विविध भाषना अनेक पुस्तकोना उत्तम सम्पादकोमां तो प्राचार्य जिनविजयजी ज सर्वोतम छे ए निःसंशय छ । एमनी ए कोटिये पहोंचनार हजु सुधी जोयो नथी, अने पागल ते कोई करी बतावे एमां पण संदेहज छ । सम्पादकनी तेननी धगश पाजे पंचोतरे वर्षनी उम्र वटावी गया पछी अने बन्ने अांखोना तेज लगभग हणाय गया पछी पण एवीने एवी तीव्रज छ । आजे पण कोई पुस्तक तेमनी दृष्टिये सम्पादन योग्य जणाय तो ते माटे तेमनो प्रयत्न एटलाज तीव्र वेगे चालु थई जाय छे । जेटलो वेग पहेला जोवामां प्रावतो हतो । तेमणे पोतेज सम्पादित करेला संदेशरासक जेवा इतिहास सर्जक पुस्तक नवी सामग्री उप
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