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पं० सुखलाल सिंघवी
माटे मुख्य आकर्षण हत् । तेथी तेत्रो १६३१ नी आसपास शांतिनिकेतन गया अने त्यां प्रासन बांधी पोतानी विद्या विषयक करवा धारेली प्रवृत्तियोनी तेमणे योजना घडी, जेमां जैन विद्यार्थीग्रो माटे संपूर्ण फ्री वा अंक विद्यार्थी गृहनु अने सिंघी जैन ग्रंथमाला नामक सिरीजनु स्थान हतु; उपरांत यथासंभव जैन तत्व अने साहित्यना अध्ययन-अध्यापन माटेनी पणु विचारणा हती । पा रीते शांतिनिकेतनमा, काम प्रारंभायु।
मुनिजी अने अमारा बधानु मकान अमदाबादमां, अमनु रहेवानु शांतिनिकेतनमां अने ग्रंथोनु मुद्रण कार्य कराववानुमुबइमाः पा दूर दूरनी अगवडमांथी छुटवा छेवटे १६३४ मां अमणे नक्की कर्यु अने अमदाबाद प्रावी सिंघी जैन ग्रथमालनु काम चालु राख्यु ।
१६३८ सुधी प्रा क्रम चाल्यो । दरम्यान अंक नवो प्रसंग उपस्थित थयो। श्री के. अम. मुनशी ते वखते मुंबई राज्यना गृह प्रधान हता । अंमने अंक विशिष्ट दान मलता भारतीय विद्याभवन नामक संस्था स्थापवानो विचार पाव्यो । प्रेमणे मुनिजी ने पोता तरफ खेच्या, अने अंमने पोताने इष्ट अने फावतु काम करवानी पूर्ण स्वतंत्रता प्रापी। अटले मुनिजीने मुबइमां रही सिंधी जैन ग्रंथमालनु काम करवानी वधारे अनुकूलता थई प्रावी त्यार बाद.१६४२ नो 'Do and Die' ना संग्रामनो देश मां धोष जाग्यो । मने लागे छे के पा वखते मुनिजी अ घोषमां न तणाया प्रेनु कारण, मोटे भागे ते प्रो जेसलमेरना भंडारोना अवलोकन प्रादिमां गू थायेला अने त्यांथी मेटली बधी नवी अने उपयोगी साहित्य-सामग्री लावेला के जेमा अंमनु विद्यावृत्तिनु पासु वधारे प्रबल बनेलु अंहो जोइन। भारतीय विद्याभवननी बीजी प्रवृत्तिओंमां भाग लेवानु पण अमने शिर पावेलु । प्रेटले तेसो भवन साथे अकंदर अकरस जेवा थड़ गयेला। मुनशी जी जेवा भार्गववंशी अने परशुराम भक्त अने मुनिजी जेवा क्षत्रिय वृत्तिना परमार-पा बन्नेनु जोडारण विस्मय उपजावे अं तो हतुज, पणचाल्यु। पागलजतां मुनिजीनु मन मुबइ अने भारतीय विद्या भवन थी कांइक दूर ने दूर खसत गयु, पण सिंघी जैन धमालानी प्रवृत्ति तो तेश्रो पूरा उत्साहथी चलाव्ये ज।
__मुनिजीनु मानस मुख्यपणे तार्किक छ । रूढियोमा ऊछर्या अने रह्या छतां मन मनु श्रेथी संतोषातु नथी। बीजीबाजु हिटलरना जर्मनीमां थोडो वखत रह्या पछी मनु मन अवा कोई मार्गने जांखतु में बारंबार जोयेलु के मात्र अकेला पोथी-पानां अने ग्रंथोना ढगलाथी शु? लोको वच्चे, खास करी गरीबो बच्चे रहेवु', अना संस्कार घडतरमा अने गरीबी निवारणमा यथाशक्ति भागलेवो वा मनोरथो सेवता में प्रेमने जोया छ । तेमनु मन हवे पोताना जन्मस्थान अने प्रदेश भणी जवा लाग्यु। तेमने जोईतु तद्दन कान्त ग्राम्य प्रदेश अने बीजी प्राथमिक सगवड़ चित्तोड पासे चंदेरिया नामना नानकडा स्टेशननी नजीक अणधारी रीते मली गई। त्यांना एक भला सखी ठाकोरे मुनिजीने जमीन पापी । त्यां मुनिजी पोतानो तंबुवास शरू कर्यो अने त्यां ज ग्रे कांटाली अने पथरीली जमीन नो थोड़ो भाग खेती लायक अने रहेवा लायक बनावी त्यां ज खेती शरू करी, पशू-पालन साथे हत्ज । अने पासपासनां गामडांना साव गरीव लोकोना बालको माटे प्रेक नानीशी निशाल पण शरू करी । प्रा वधु चालतु त्यांरे पण तेश्रो पोतानी प्रिय ग्रंथमालानु काम तो चलाव्ये राखता ज । अलवत्त, प्रेमां प्रेकधारी जोइतो वेग मापी न शके, श्रेपण देखीतज छ।
- क्रमे क्रमे ग्रे आश्रम विकसतो गयो अने मुंबइनो विद्या भवन साथेनो संबंध पण मात्र उपर उपरनो ज रह्यो। चंदेरियाना ग्रे सर्वोदय सेवाश्रमनो विकास पण चडती पड़तीना क्रममांथी पसार थया वगर न रही शक्यो। पण अंते अनी स्थिति घणी सारी अने स्पृहणीय वनी। पण मुनिजी अ कोइ अंक बंधियार
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