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सत्यव्रत 'तृषित' का बन्ध शतक का उल्लेख भी सूची पत्रों में हुआ है ।
इस प्रकार संस्कृत का शतक-साहित्य विशाल तथा वैविध्यपूर्ण है। पता नहीं शतक संज्ञा का क्या । आकर्षण था कि प्रायः समस्त कल्पनीय विषयों पर शतक लिखे गये हैं। स्पष्टतः इस साहित्यिक विधा ने जनता में अपूर्व ख्याति प्राप्त की होगी। इसीलिए कवियों ने अपनी कविता को शतक का प्रावरण पहना पहनाकर प्रचलित किया । यह खेद की बात है कि साहित्य की यह रोचक सामग्री अस्तव्यस्त बिखरी पड़ी है । उपलब्ध शतकों का सुसम्पादित संग्रह अवश्य प्रकाशित होना चाहिये ।
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