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प्राचार्य जिनविजयजी
गुजरात पुरातत्व मंदिरना भूतपूर्व अचार्य श्रीमान जिनविजयजी प्राचार्य तरीकेना जीवनमां सीधी रोते परिचयमां पावनार के प्रेमनी साहित्य कृतियो द्वारा परिचयमां पावनार बधा मोटे भागे तेमने गुजराती तरीके पोलखे छे अने जाणे छ । अने तेथी हरेक प्रेम मानवा ललचाय के गुजरातनी व्यापार जन्य साहस वृत्तिए ज अमने दरिया पार मोकल्या हशे, पण खरी बिना जूदी ज छे। तेवी जरीते, तेमनीसाथे सीधा परिचय बिनाना मारणसो, मात्र तेमनां नाम उपरथी तेमने जैन अने तेमां परण जैन साधु माने अने तेथीज कदाच तेमने वैश्य तरीके अोलखवा पण प्रेराय, परन्तु ते बाबतमां पण बिना जुदी छे ।
प्राचार्य जिनविजयजीना जीवनमा प्रा विदेश यात्राना प्रसंगथी तद्दन नवप्रकरण शरु थाय छे. अने तेथी या प्रसंगे तेमना प्रत्यार सुधीना जीवननो अने तेना मुख्य प्रेरक बलोनो परिचय आपवो उचित गणाशे।
तेमनु जन्मस्थान गुजरात नहि पण मेवाड छे। तेरो जन्मे वैश्य नहि पण क्षत्रिय रजपूत छ । परदेशमां जनारा घणखरायो पाछा प्रावी ग्रहीं इष्ट कारकीदि शरू करवा जाय छ । प्रा जिनविजयजीनु तेम नथी । तेमणे इष्ट दिशानी एटले प्राचीन संशोधननी कारकीदि अहीं क्यारनी शरू करी दीधी छ। पोतानी शोधो, लेखो, निबंधों द्वारा प्रा देश मां अने परदेशमां तेो मशहूर थई गया छे अने हवे, तेमने पोताना अभ्यासमां जे काँई बधारो करवों आवश्यक जणायो ते करवा तेश्रो परदेश गया छ ।
तेमनी जन्म अजमेरथी केटलेक दूर रूपाहेली नामना एक नाना गामडामा थयेलो। ते गाममां एकसो वरसथी वधारे ऊमरनां जैन यति रहेतां । तेमना उपर तेमनां पितानी प्रबल भक्ति हती, कारण के अ जैन यतिश्री वैद्यक ज्योतिष आदिना परिपक्व अनुभवनो उपयोग मात्र निष्काम भावे जनसेवामां करता । जिनविजयजीन मूलनाम किसनसिंह हत्। किसनसिंह ना पगनी रेखा जोईने ग्रे यतिने तेमना पिता पासेना तेमनी मागणी करी । भक्त पिता विद्याभ्यास माटे अने वृद्ध गुरुनी सेवा माटे ८-१० वरसना किसनने यतिनी परिचर्यानां मक्या। जीवनना छल्ला दिवसोमा यतिश्रीने कोई बीजा गाममां जई रहेवपड्यू। किसन साथे हतो। यति जीनां जीवन अवसान पछी किसन क रीते निराधार स्थितिमा प्रावी पड्यो। मां बाप दूर अने यतिनाशिष्य परिवारमा जे संभालनार ते तहन मूर्ख अने प्राचारभ्रष्ट । किसन रातदिवस खेतरमां रहें, काम करे अने छतां तेने पेट पूरु अने प्रेमपूर्वक खावानु न मले अं वालक उपर प्रां आफतनु पहलु बादलु प्राव्यु अने तेमाथीज विकासनु बीज-नंखायु । किसन बीजां एक मारवाड़ी जैनस्थानकवासी साधुनी सोबतमा प्राव्यो । अनी वृत्ति प्रथमथी ज जिज्ञासा प्रधान हती । मवु नवु जोवु, पूछवु अने जाणवु श्रे तेनो सहज स्वभावहतो । श्रेज स्वभावे तेने स्थान कवासी साधु पासे रहेवा प्रेर्यो । जेम दरेक साधु पासेथी आशा राखीशकाय तेम ते जैन साधुओ पण अं बालक किसनने साधु बनाव्यो । हवे में स्थानकवासी साधु तरीकेना जीवनमां किसननो अभ्यास शरू थाय छ ।
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