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सत्यव्रत 'तृषित'
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अन्यापदेश शतक १०१ अन्यापदेशात्मक पचों का संग्रह है। मधुसूदन का (३४) अन्यापदेश शतक काव्य माला के नवम गुच्छक में प्रकाशित हुआ । काव्य माला ४, पृष्ठ १८६ की पाद टिप्पणी में नील कण्ठदीक्षित के (३५) कलिविडम्बन शतक का उल्लेख हुआ है ।
उपर्युक्त टिप्पणी में उल्लिखित (३६-३८) श्रोष्ठशतक, काशिका तिलकशतक तथा जारजात शतक के कर्ता नोल कण्ठ नारायण दीक्षित के आत्मज नील कण्ठ दीक्षित से भिन्न तीन अलग व्यक्ति हैं। सभारज्जन की पुष्पिका में उपलब्ध दीक्षित के भ्रात्मवृत्त से यह स्पष्ट हो जाता है। म्रोष्ठ शतक का लेखक कवि नीलकण्ठ शुल्क जर्नादन का पुत्र है । काशिका तिलक शतक के रचयिता के पिता का नाम रामभट्ट है । तीनों का रचना काल अज्ञात है ।
(३) आश्लेषाशक विरहव्यथित मानस का करुण स्पन्दन है माधुरी विष बन जाती है । कविप्रिया को सम्बोधित शतक के समूचे पद्यों में की अभिव्यक्ति हुई है ।
वाले मालति ! तावकीमभिनवामा स्वादयन् माधुरी कञ्चिरकालमयाधुना बलवता दैवेन दूरीकृतः । उद्वायं चिरसेवितामनुदिनं तामेव तामेव सञ्चिन्तयन् भृङ्गः कश्चन दूयते तव कृते हा हन्त रात्रिन्दिवम् ॥
आश्लेषा नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण कवि प्रिया को शतक में प्राश्लेषा कहा गया है । उसका वास्तविक नाम 'गङ्गा' प्रतीत होता है (गङ्गेति प्रथिता करोषि सततं सन्तापमित्यद्भुतम् )
वियोग में पूर्वानुभूत संयोग की उत्कण्ठित मन की इसी कसक
इसके रचयिता नारायण पण्डित कालिकट नरेश मानदेव (१६५५-५८ ) के प्रति कवि थे । मानदेव स्वयं विद्वान् तथा विद्या प्रेमी शासक था। नारायण पण्डित उत्तरराम चरित की भावार्थदीपिका टीका के लेखक नारायण से भिन्न हैं । प्राश्लेषा शतक त्रिवेन्द्रम से १९४७ में प्रकाशित हुआ है ।
प्रख्यात वैष्णवाचार्य महाप्रभु चैतम्य के जीवन चरित से सम्बन्धित रचनाओं में सार्वभौम (१७वीं शती) की (४० ) शतश्लोकी ने बंगाल में काफी लोकप्रियता प्राप्त की है । १३
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कुसुमदेव कृत (४१) दृष्टान्त कलिका शतक सौ अनुष्टुपों की नीतिपरक रचना है। इसके प्रत्येक पद्य के भाव को दृष्टान्त द्वारा पुष्ट किया गया है। यही इसके शीर्षक की सार्थकता है।
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उत्तमः क्लेशविक्षोभं क्षमः सोढुं नहीतरः । मणिरेव महाशा रणवर्षणं न तु मृत्करणः ||
१३. द्रष्टव्य - S. K. De : Bengats Contribution to Sanskrit Literature and Studies in Bengal Vaisnavism, 1960. P. 102.
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