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सत्यव्रत तृषित'
[ ३१३ चारुचर्याशतक काव्यमाला के द्वितीय गुच्छक तथा 'क्षेमेन्द्रलघुकाव्यसंगः' में मुद्रित हुआ है।
शिल्हन के (१५) शान्तिशतक की विशुद्ध धार्मिक रचना भर्तृहरि के वैराग्यशतक के अनुकरण पर हुई है । शान्तिशतक विशुद्ध धार्मिक रचना है, जिसमें जीवन की निस्सारता तथा वैराग्य एवं विरक्तों की चर्या का गौरवगान किया गया है। शतक के पद्यों में भर्तृहरि की प्रतिध्वनि स्पष्ट सुनाई पड़ती है। शिल्हण का समय अज्ञात है। पिशेल ने शिल्हण को विक्रमाङ्क देवचरित के प्रणेता विल्हरण से अभिन्न मानकर उसकी स्थिति ११ वीं शती में निर्धारित की है।
शम्भुकृत (१६) अन्योक्तिमुक्तालताशतक में १०८ नीतिपरक अलंकृत अन्योक्तियां संगृहीत हैं। कविता में विशेष आकर्षण नहीं है। शम्भु कश्मीर के प्रसिद्ध शासक हर्ष (१०८६-११०१ ई०) के सभाकवि थे। उनका 'राजेन्द्र कर्णपूर' आश्रयदाता की प्रशस्ति है।
(१७) चित्रशतक मयूर-रचित सूर्यशतक की परम्परा का स्तोत्रकाव्य है। इसमें विभिन्न देवीदेवताओं की विविध छन्दों में स्तुति की गई है। काव्य की यह विशेषता है कि प्रत्येक पद्य में 'चित्र' शब्द अवश्य पाया है। श्लोकों की कुल संख्या सौ है । सम्भवतः इसी कारण कवि ने इस गन्थ का नाम चित्र शतक रखा है । गन्थ को रचना का उद्देश्य अन्तिम पद्य में इस प्रकार बतलाया गया है
बालानामपि भूषणं परिगलदवर्णं यथा जायते प्राज्ञानां मनस: प्रमोदविधये चित्रं विहासास्पदम् तद्वत्काव्यमिदं भवेदय बुधः प्रोत्साहना नित्यशः
कर्तव्या चतुरोक्तिः शिक्षण पुरस्कारेण निर्मत्सरैः ।। महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश के सम्पादक श्रीधर व्यंकटेश केतकर ने चित्रशतक के प्रणेता रामकृष्ण कदम्ब की स्थिति तेरहवों शताब्दी में निश्चित की है।
नागराजकवि का (१८) भावशतक काव्यमाला के चतुर्थ गुच्छक में प्रकाशित हुअा है। काव्यमाला के उक्त भाग के सम्पादक के अनुसार नागराज धारानगरी का नृपति था । उसके आश्रित किसी कवि ने इस शतक की रचना उसके नाम से की। नागराज इसका वास्तविक कर्ता नहीं है [नाग राजनामा धारा नगराधिपः कश्चित् महीपतिरासांत्, तन्नाम्ना तदाश्रितेन केनचित् कविना (भावेन !) शतकमेतनिमितामिति] शतक के अन्तिम पद्य में नागराज के शौर्य का जिस प्रकार वर्णन किया गया है, उससे भी उसका शासक होना प्रमाणित होता है ।
भावशतक के प्रत्येक पद्य में एक विशिष्ट भाव निहित है, जिसका स्पष्टीकरण पद्य के पश्चात् गद्य में प्रायः कर दिया गया है। कहीं कहीं पाठक के अनुमान अथवा कल्पना पर छोड़ दिया गया है। उदाहरणार्थ
८. द्रष्टव्य--Studies in Sanskrit and Hindi, July, 1967 (University of Rajasthan) .
में प्रकाशित श्री रमेशचन्द्र पुरोहित का लेख 'रामकृष्ण कदम्ब'-नव्ययुग के एक अज्ञात कवि तथा उनकी
अप्रकाशित रचनाए । पृष्ठ ७२-८२ । ६. सोऽयं दुर्जयदो जंगजनितप्रौढप्रतापानल
ज्वालाजालखिलीकृतारिनगरः श्रीनागराजो जयते । १०२
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