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डॉ० प्रभाकर शास्त्री
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'देब्यावाच मनुस्मरन् मृगयया वीरैरनेकवृतो गत्वा तत्पदमाप संपदवधि तल्लिङ्गमालिङ्गितम् । भीमै गिवरमणि घरैनिभिद्यभूमि दृढा माविर्भाव्य महोपचार निचयस्संपूज्जयामास सः ।।७४२।।
'जयवंश महाकाव्य' में भी इसी वृत्त को प्रस्तुत किया हैं। अन्य ऐतिहासिक ग्रन्थों में अम्बिकेश्वर के प्राप्ति स्थान के विषय में कुछ भी विशेष नहीं बतलाया गया है। फिर भी जमीन के अन्दर से हो इस मूर्ति को निकाल कर स्थापित किया गया था-इस विषय में सभी एक मत हैं। श्री पर्वणीकरजी लिखते हैं
"मदाज्ञयेतो रचयाम्बिकापुरी 'पुरी' महेन्द्रस्य पराजये तया । तथैकपिङ्गीमपि सम्पदंचितां दशाननीयामपि हाटकोच्चिताम् ।। २२॥ भूवोऽन्तरालीनमिहै व यत्नतो नरेन्द्र ! निस्सार्य तमम्बिकेश्वरम् । प्रतिष्ठितीकृत्य यथावदर्चये: जयस्ततस्तेऽधिरणं भविष्यति ।। २३।।
xxxx 'तत्राम्बिकेश्वर मथाय॑ मशेषदेवैः सन् मन्दिरे धरणितो नपतिः प्रतापी । उद्ध त्य सद्विजवरैः प्रयतैः प्रतीतैः तं प्रत्यतिष्ठिपद थान्वहमाचिचच्चा ॥३६।।
(जयवंश-तृतीयसर्ग-२२ से ३६ श्लोक, पृष्ठ १३-१५) . . श्री सूर्य कवि की कल्पना है कि भगवति पार्वती भगवान शिव के बिना सन्तुष्ट नहीं रहेगी-इसी विचार से काकिल ने आमेर में अम्बिकेश्वर की स्थापना की थी
"अभीष्टदात्री मम सा हि दुर्गा विना शिवं स्थास्यति न प्रतुष्टा । इतीव संचिन्त्य तमम्बिकेशं शिवं समस्थापयदत्र पुर्याम्" ।।
(मानवंशकाव्य-तृतीयसर्ग २१ वां पद्य पृ० ८६) इनके पश्चात् इनके पुत्र श्री हणूदेव भामेर के शासक बने । ४. श्री हणदेव (वैशाख शु० १० सं० १०६६ से कार्तिक शु० १३ सं० १११०)
यद्यपि इनकाशासन काल श्रीकाकिल की अपेक्षा बहुत अधिक था, इन्होंने कुल १४ वर्ष राज्य किया था, तथापि इनके शासन काल में कोई विशेष घटना नहीं हुई। किसी भी इतिहास में इनके जीवन पर अधिक विवेचन नहीं मिलता । इनके पुत्र का नाम था५. श्री जान्हड (कार्तिक शु० १३ सं० १११० से चैत्र शु० ७ सं० ११२७)
इनके अनेक नाम थे। इस काव्य में इन्हें "जानुग" नाम से व्यवहृत किया है। यों इनका नाम जनेदेव भी मिलता है। इन्होंने भी १७ वर्ष राज्य किया, परन्तु इनके समय में भी कोई विशेष घटना नहीं हुई थी। 'पृथ्वीराज विजय' नामक इस काव्य में श्री हरगूदेव एवं श्री जानुग के लिए एक ही श्लोक लिखा गया है
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