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राजस्थान भाषा पुरातत्व
(क) डिंगल भाषा की प्रमुख विशेषता उसके शब्द चयन की है, जिसमें द्वितवर्ण की प्रधानता
रहती है । ये द्वितवर्ण दो प्रकार के होते हैं; एक नो प्राकृत और अपभ्रंश से आये हुए रूपों के आधार पर स्वीकृत ; जैसे-मग्ग, खग्ग प्रादि; दूसरे अनुकरण पर बनाये हुए; जैसे सहज्जि, उछल्लि, मेल्लि आदि । अनुनासिकता की प्रधानता । डिंगल में पांचों अनुनासिकों का प्रयोग मान्य है परन्तु उच्चारण में 'ज' का उच्चारण नहीं होता और प्रादि 'ण' का बहत कम प्रयोग होता है।
(ख)
(ग)
युद्ध-वर्णन में दृश्य का साक्षात्कार कराने के लिये सानुप्रासता, सानुनासिकता और ध्वनि प्रतीकों का प्रयोग; जैसे-सानुप्रासताः चलचलिय, मलमलिय, दलदलिय आदि; सानुनासिकता । चमंकि, टमंकि ; ध्वनि-प्रतीकत : ढमढमइ ढोल नीसाण........... ।
भाषा में युद्ध-जनित कर्कशता लाने के लिये ट-वर्गीय ध्वनियों का प्रयोग ।
(घ) (ङ)
व्याकरण के रूपों में प्राचीन सर्वनामों 'अम्हि', 'अम्हा', 'अम्हीणो', 'तुम्ह', तुम्हा' आदि; तथा विभक्तियों में 'ह', 'हंदा', तणउ', 'तणांह', चा-ची आदि; और क्रिया में इय, आदि प्रत्ययों वाली क्रियाओं का प्रयोग ।
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