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श्री उदयसिंह भटनागर
नार्थी है । आधुनिक 'टप' पत्तों का बना हुआ छाते के आकार का होता है, जो धूप से बचने के लिये काम में आता है। आजकल राजस्थानी में 'टप' गाड़ी या तांगे के ऊपर के प्राच्छादन को भी कहते हैं। इधर झाबुअा के भीलों में 'टप' शब्द का प्रयोग अधोवस्त्र के लिये ही होता है । भीलों के समान ही इन लोगों में शरीर पर गोदने की प्रथा है। सामाजिक व्यवस्था में भी एक प्रकार की समानता देखी जाती है । इस में परस्पर वर्ग और श्रेणी में आदर सम्मान की भावना बड़ी तीव्र है। उच्च श्रेणी या मुखियों के पादर के लिये भाषा में विशेष प्रयोग होते हैं; जैसे--
'पाना' के अर्थ में
१. सामान्य व्यक्ति के लिये-सउ (Sau) २. आदरणीय या बड़े के लिये-मलिउ माइ (Maliu mai) ३. पदस्थ मुखिया के लिये--सु सु माइ (Su Su Mai)
४. राजपरिवार के व्यक्ति के लिये--अफिप्रो माइ (Afio Mai) इसी प्रकार मुखिया तथा अन्य प्रादरणीय व्यक्ति के प्रति आदर प्रदर्शित करने के लिये सर्वनाम में द्विवचन का प्रयोग होता है। राजस्थानी में 'पापा' सर्वनाम इसी प्रकार का है। क्रियाओं में भी 'या', प्राव, 'पावो', 'पधारो', 'पधारवा में आवे' में वर्ग और श्रेणी का भाव निहित है। राजस्थानी के मूल में यह भील संस्कृति की प्रवृत्ति होना स्वाभाविक है । अन्य किसी भारतीय भाषा में यह प्रभाव नहीं देख पड़ता। इसी प्रकार राजस्थानी सर्वनामों में 'थू', 'थां', 'थें' और 'पाप' (आप) के भीतर भी वही प्रवृत्ति है। हिन्दी में जो आदरवाचक का प्रयोग देख पडता है वह राजस्थानी का ही प्रभाव है। मुगल सभ्यता (विशेष कर दरबारी सभ्यता) राजपूत सभ्यता का ही विकसित रूप है । इस प्रकार राजपूत सभ्यता का प्रभाव मुगल सभ्यता के द्वारा हिन्दी पर पड़ा है। मराठी में 'पाप' का प्रभाव अब भी द्विवचन में होता है 'पापल्या माणस'।
उच्चारण सम्बन्धी प्रवृत्तियों में भी यह समानता देखी जाती है। राजस्थानी में 'स' के स्थान पर 'ह' का उच्चारण होता है । यह भीली की एक विशेषता है । बोलियों में यह 'ह' अति अल्प सुनाई पड़ता है अथवा कहीं लुप्त भी हो जाता है, कभी कभी उसका स्थान कोई स्वर ले लेता है; जैसे---
सासू . = हाऊ सांस . = हाए .
देवीसींग = देवी-ग' यह भीली प्रभाव है । अलि से लेकर दक्षिण में खानदेश और पूर्व में विन्ध्य और सतपुड़ा की उपत्यकाओं में भीली प्रदेश में यह प्रवृत्ति वर्तमान है। राजस्थान और गुजरात-जहां इनके राज्य विस्तृत थे इस प्रवृत्ति से पूर्णतः प्रभावित हैं । शकों की भाषा में इस प्रवृत्ति के होने के कारण ग्रियर्सन ने इसको शक प्रभाव माना है, परन्तु शकों में और इनमें इस प्रवृत्ति का स्रोत एक ही है और उसका मूल स्थान है काकेशिया, जहां से दोनों के पूर्वजों ने प्रसार किया । भील हणों से प्राचीन हैं। यही प्रवृत्ति सामोग्र
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