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डॉ० भोगीलाल जयचन्द भाई सांडेसरा
'सं० १५७१ वर्षे आषाढ वदि १२ बुधे अद्य इ धोधाद्र गे श्रीचंद्रप्रभचैत्यालये श्रीमूल संघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये मट्टारक श्रीपद्मनंदिदेवास्तत्पट्टे म० देवेन्द्रकीत्तिदेवास्तत्पट्ट भ० श्रीविद्यानंदिदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीमल्लिभूषण देवास्तत्पट्टालंकार गच्छनायक जिनाज्ञाप्रतिपालक छत्री सगुणविराजमान वइताली सदोष निवारक श्रदार्य स्थैर्यगाम्भीर्यादिगुण विराजमान भट्टारक श्रीलक्ष्मीचंददेवोपदेशात् हुंबडज्ञातीय एकादशप्रतिमाधारक द्वादशविधतपश्चरणनिरत त्रिपंचास... ( पाण्डुलिपि का अन्तिम पत्र
लापता होने से पुष्पिका की श्राखिरी चन्द पंक्तियां नहीं मिलती । )
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इसके बाद का ग्रन्थ है अमरकीर्त्तिकृत 'छकम्मुवएसो' अथवा 'षट्कर्मोपदेश' । यह श्रावकों के धर्म का आलेखन करनेवाला अपभ्रंश काव्य है । इसकी रचना महीतट प्रदेश के गोद्रह (पंचमहाल जिले के गोधरा ) में सं० १२७४ ( ई० स० १२१६ ) में हुई है । २५०० पंक्तियों के इस ग्रन्थ का सं. १५४४ में लिखा हुआ हस्तलेख अपभ्रंश और प्राचीन गुजराती के सुप्रसिद्ध विद्वान् स्व० प्रो० केशवलाल हर्षदराय ध्रुव ने सर्वप्रथम प्राप्त किया था। तत्पश्चात् प्रो० मधुसूदन मोदी ने उसका सम्पादन किया और गायकवाड्स् प्रोरियेन्टल सिरीज में उसको प्रसिद्ध करने का आयोजन हो गया है । 'छकम्मुवएसो' के कर्त्ता श्रमरकीत्ति दिगम्बर सम्प्रदाय के माथुर संघ के चन्द्रकति के शिष्य थे । नागर कुल के गुणपाल एवं चचिचणी के पुत्र अम्बाप्रसाद की प्रार्थना से इस काव्य की रचना हुई । कर्त्ता के अपने ही कथन के अनुसार श्रम्बाप्रसाद उनका छोटा भाई था । इससे विदित होता है कि अमरकीति पूर्वाश्रम में नागर ब्राह्मण थे और बाद में उन्होंने दिगम्बर साधु की दीक्षा ली थी । उनका यह भी विधान है कि 'छकम्मुवएसो' की रचना के समय गोद्रह में चौलुक्य वंश के कर्णराजा का शासन प्रवर्त्तमान था । गोद्रह के चौलुक्य राजानों की शाखा अणहिलवाड पाटण के चौलुक्य राजवंश से भिन्न है, और अमरकीति ने जिसका उल्लेख किया है वह कर्ण उससे करीब सवा सौ वर्ष पूर्व के गुजरात के चौलुक्य नृपति कर्णदेव ( सिद्धराज जयसिंह के पिता कर्ण सोलंकी) से भिन्न है ।
'छम्मुव सो' की प्रशस्ति में अमरकीर्ति ने अपने अन्य सात ग्रन्थों का उल्लेख किया है:'नेमिनाथचरित्र', 'महावीरचरित्र', 'यशोधरचरित्र', 'धर्मचरित्र टिप्पण', 'सुभाषितरत्ननिधि', 'चूडामणी' श्रौर ध्यानो देश' । तदुपरान्त वह कहता है कि लोगों के प्रानन्ददायक बहुतेरे संस्कृत-प्राकृत काव्य भी उसने लिखे थे । परन्तु इनमें से एक कृति अभी मिलती नहीं है ।
प्रमाण में प्राचीन काल में गुजरात में रचित दिगम्बर साहित्य की ये उपलब्ध रचनाएँ हैं । यदि ऐसी अन्य कृतियों की भी खोज की जाय तो गुजरात के दिगम्बर सम्प्रदाय के इतिहास पर एवं तद्द्वारा गुजरात के सांस्कृतिक इतिहास पर ठीक-ठीक प्रकाश डाला जा सकेगा ।
१. 'छकम्मुवएसो' के आदि-अन्त के अवतरण के लिए देखिये मोहनलाल दलिचन्द देसाई, जैन गुर्जर कवियों, भाग १, प्रस्तावना, पृ० ७६-७८; केशवराम शास्त्री, 'आपणा कवियों, पृ० २०४-५१ ।
२. प्राचीन गुजराती में भी थोड़ा कुछ दिगम्बर साहित्य मिलता है । श्री मोहनलाल देसाई ने ('जैन गुर्जर कवियों, भाग १ पृ० ५३ ५५ ) मूलसंघ के भुवनकीति के शिष्य ब्रह्मजिनदासकृत 'हरिवंशरास' (सं० १५२०), 'यशोधर रास', 'आदिनाथ रास' और 'श्रेणिक रास' का उल्लेख किया है। दिगम्बरकवि रचित पाँच अज्ञात फागु-काव्यों का परिचय श्री अगरचन्द नाहटा ने दिया है ( 'स्वाध्याय' त्रैमासिक, पु० १, अंक ४), जिनमें से रत्नकीर्ति का 'नेमिनाथ फाग' गुजरात के भड़ौच के नजदीक के गांव हांसोट में रचा हुआ है। गुजरात में रचित दिगम्बर साहित्य के उपरान्त गुजरात में जिनकी प्रतिलिपि की गई हो ऐसे दिगम्बर ग्रन्थों के लेखन-स्थान एवं लेखनवर्ष का अध्ययन यदि पाण्डुलिपियों की मुद्रित सूचियां आदि के श्राधार पर किया जाय, तो भी गुजरात के दिगम्बर सम्प्रदाय के प्रसार के बारे में स्थलकालदृष्ट्या बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त हो सकता है ।
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