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"धागड के लोक साहित्य की एक झांखी"
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नावण वेला वै गै धेरे प्रावो रुड़ा राजवि............
हरियो राजवि साय ..." हाय......हाय......... सोना जारि जल भरि धेरे आवो रुड़ा राजवि..........
हरियो राजवि हाय...... हाय........हाय....... ! दातु ण वेला वै गै घेरे प्रावो रुड़ा राजवि.........
हरियो राजवि हाय.......हाय....."हाय ......... ! भोजन परुस्य एम रय घेरे प्रावो रुड़ा राजवि........
हरियो राजवि हाय........"हाय ......."हाय......... ! जम्मा वेला वैगै घेरे प्रावो रुडा राजवि.........
हरियो राजवि हाय........ हाय........"हाय......... ! ढालया ढोलिड़ा एम रया घेरे प्रावो रुड़ा राजवि.........
हरियो राजवि हाय......."हाय....... हाय..... ... !
(xiii) वाड़ि मँय नो सॉप लियो कटावो रे हाय केसरियो लाडलो..........
साय केसरियो लाडलो, हाय...... पातलियो सगवाड़ा नो सुतारि तेड़ावो रे हाय केसरियो । केसरिया ने पालकड़ि गड़ावो रे , पातलियो । डोगर पर नो रंगारि तेड़ावो रे , केसरियो । पातलिया ने पालकड़ि रंगावो रे , वाँसवाड़ा नो वणारि तेड़ावो रे , पातलियो केसरिया ने पालकड़ि वणावो रे , पातलिया नि जाने सलावो रे , केसरियो एणि जान में तो अमुक भाइ प्रोसिला हाय केसरियो , एणि जान में तो संपो भाइ , , , एरिण जान में तो अमुक भाइ मरणा , , अमुक वो नो सुड़िलो लुटॅणो रे , पातलियो ,, लाडि वो नो फागणियो लुटॅणो रे , , ,
(४) " भजन " रोणिजा थकि रे जाणे बाबो प्रावियो अरजि ने पुसे से पुसणं केनो रे वाज़ से अरजि दावड़ो केनि रे सारे से बाकरिये भो तो वाजो रे गुजर दावड़ो भाबी मारि बकरिये सरावे
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