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शीखोनी अनुश्रुतिमां श्रा बनाव नीचे प्रमाणे नोधवामां आवेलो छेः
जहांगीरे गुरु ने तेनी सामे बोलाव्या अने का के 'तु' एक महान संत छे, एक महान उपदेशक छे अने पवित्र पुरुष छे, तु गरीब अने तवंगर ने समान गणे ले, ते थी मारा दुश्मन खुसरोने तें पैसा श्राप्या ए योग्य न कर्यु' अर्जुने जवाब प्राप्यो के हुँ हिन्दु के मुसलमान, तवंगर के गरीब, दोस्त के दुश्मन एम तमामने मोहबत के नफरतनी (पक्षपात ) दृष्टि थी जोतो न थी, अने आज कारण थी तारा पुत्र ने में थोड़ा पैसा तेनी मुसाफरीनां खर्च माटे आप्या अने नहि के ते तारो विरोधी हतो ते थी, जो में तेने तेनी जलती परिस्थितिमां सहाय न करी होत अने तारा पिता शहेनशाह अकबरनी मारा तरफ नी माया ध्यान में राखी होत तो आम जनता ए मारा हृदयनी कठोरता माटे मने धिकार्यो होत, अने तेस्रो कहेत के हुं डरतो हतो, दुनियांना गुरु, गुरुनानक ना अनुयायी ने माटे ए विना अरण घटती बनत” ते पछी जहांगीरे तेने वे लाख रुपियानो दंड कर्यो ने हिंदु ने मुसलमान धर्मो विरुद्धनां भजनो तेनां ग्रंथमाथी काढी नांखवानो तेने हुक्म कर्यो । त्यारे अर्जुन गुरु बोल्या के 'जे कई धन मारी पासे छे ते रंक निराधार प्रने प्रजाण्या लोकोने माटे छे, जोतारे धन जोइ होय तोतु मारी पासे जे छे ते लई ले; परंतु जोतुं दंड तरीके ते मांगतो होय तो हुं एक कोडी पण तने श्रापीश नहि; कारण के दंड दुष्ट दुन्यवी लोको उपर लादवामां आवे छे अने नहि के धर्माचार्यो अने सन्यासीओ उपर । ग्रंथसाहेबमांना भजनो काडी नांखवा बाबत मां जे कई तें कह्य ते अंगे जावा के हुं सहेज परण ते मांथी काढी नांखीश नहि, के बदलीस नहि, हुं शाश्वत ईश्वर ने परमात्मा नो भक्त छु, तेना सिवाय कोई शासक न थी, अने तेणे जे कई गुरु नानक थी मांडी गुरु रामदास सुधीना गुरुना अने ते पछी मारा हृदय मां प्रगट कर्यु छे ते पवित्र ग्रन्थ साहेब मां नौंववामां आवे छे, जे भजनो माँ स्थान लीधे लु छे ते कोई हिंदु अवतार के कोई मुसलमान पैगम्बर ने माटे अपमान युक्त न थी, पेगम्बरो धर्माचार्यो ने अवतारो असीम साश्वत् ईश्वर तरफ थी कार्यो करे छे एम तेमां श्रद्धापूर्वक लखेलु छे, मारु ध्येय सत्नो प्रचार अने जूठ तो विनाश करवातु छे अने ए कार्यनी सिद्धि मां श्र क्षणभंगूर देहनो लय या तो हूँ मारु श्रहो भाग्यलेखीश.
डा० छोटूभाई र. नायक
कई जवाब आया बिना मुलाकातनो प्रोरडो छोडी जहांगीर चाल्यो गयो, काजी ते पछी गुरुने जरायु के 'तमारे दंड भरवो जोइए अने नहि तो केद भोगववी जोइए; अर्जुन दंड भरवा माटे फांलो उधराववानी मनाई तेमना अनुयायीनो तुरतज करी, काजीने अने पंडितो तेमना ग्रंथ मांथी वांधा भरेलां भजनो काढी नांखे तो तेमने मुक्ति श्रपवानी दरखास्त पेशकरी, त्यारे अर्जुन जवाब प्राप्यो के 'मनुष्यो ने आ ने बीजी दुनियां मां सुख अने नहि के आपत्ति आपवा ग्रंथ साहेबनी रचना करवामां श्रावेली छे, तेने नये सरथी लखुवु अने तमो मांगों छो ते प्रमाणे तेमाथी काढी नाखवु अने तेनां फेरफार करवो असंभवितछे, ते पछी शत्रुओए जे त्रास तेमना उपर गुजार्यो ते सर्व गुरुए शांत चित्तं श्रने खामोशी पूर्वक सहनकर्यो अने न तो निसासो नांख्यो अने न तो दुःखनो अवाज काढयो, बदले सु वचन उच्चारवा तेमने वीजी तक आपवामां प्रायी त्यारे निडरपणे तेणे जवाब प्राप्यो, 'मूर्खाश्रो ! हुतमारा आवर्तन थी कदी डरवानो
1. Gokul Chand Narang-Transformation of Sikhism, pp. 31-41.
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