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________________ साधारण। ८ वर्ष की आयु से ही रात्रि भोजन का एवं कच्चे पानी लगातार डेढ़ माह तक जाकर उनकी सार संभाल करती थीं। उनकी का त्याग किया था। कम से कम पानी का व्यवहार वे स्नान के उदारता, करुणा एवं सेवा भावना महनीय थी फलस्वरूप उनकी लिए करती थीं। जाति-पांति एवं भेदभाव से रहित उनका जीवन संपत्ति में भी अपार वृद्धि हुई। उनका जीवन इतना सरल, सीधा-सादा समता से परिपूर्ण था। श्रीमती कांकरिया का समग्र जीवन तप: पूत एवं सदाचार से युक्त था कि उन्होंने कभी कोई पुरस्कार स्वीकार था। तपस्या उनके जीवन का एक प्रधान अंग थी। उन्होंने अनेक नहीं किया। वे अभिनन्दनों एवं सम्मानों से सदा निर्लिप्त रहीं। बार उपधान तप किया। वर्धमान तप बारह बार किया। नवपद ओली अहिंसा, अनेकान्त एवं अपरिग्रह की इस देवी ने दिनांक २० की तपस्या भी अनेक बार की। वर्षीतप भी कई बार किये। जुलाई, १९९९ मंगलवार आषाढ़ वदी अष्टमी को ब्राह्म वेला उपवास, आयंबिल, बेला, तेला से लेकर ८ एवं दस की उन्होंने ७.४५ पर इस असार संसार को छोड़कर महाप्रयाण किया। इस तपस्याएँ कीं। उनका यह तपः पूत जीवन प्रणम्य और नमनीय है। दिन भगवान नेमीनाथ का जन्म कल्याणक भी था। मृत्यु से पाँच दिन अस्पतालों में जाकर रोगियों में फल वितरण, औषधि वितरण पूर्व उन्हें अपनी मृत्यु का आभास हो गया था। ६ माह पूर्व ही उन्होंने तो उनकी दैनिक जीवनचर्या थी। सड़क पर किसी भी रोगी एवं अपने सभी गहने भी उतार कर गरीबों में वितरित कर दिये थे। अपाहिज को देखकर अपना वाहन रुकवा देना उनका सहज स्वभाव चौविहार संथारा पूर्वक अपनी नश्वर देह को त्याग कर वे अमरत्व था। उसे अपने वाहन में लेकर अस्पताल पहुँचाना एवं उसकी को प्राप्त कर गईं। अपने पीछे वे अपनी पति, पुत्र-पुत्रियों, पोतेशुश्रुषा की सम्पूर्ण व्यवस्था कर ही वे वहाँ से हटती थीं। पोतियों आदि का भरापूरा परिवार छोड़कर गईं। उनके पति श्री गो के प्रति उनकी श्रद्धा अपरिमित थी। उन्होंने अपने हरखचंद कांकरिया उनके प्रत्येक धर्म कार्य में दिल खोलकर जीवनकाल में हजारों गायों को अभयदान दिलवाया। पालीताणा में सहयोग करते रहे हैं। उनके अप्रतिम सहयोग से ही वे सेवा का उन्होंने गोशाला का निर्माण करवाया। वहाँ अशक्त, वृद्ध गायों को पर्याय बनीं। उनकी स्मृति को हमारे अशेष प्रणाम। वस्तुत: वे एक रखकर उनकी परिचर्या की जाती है। शलाका पुण्यात्मा थीं। आचार्य अमितगति का निम्न श्लोक उनका इनका एक सम्बन्धी बड़ा बाजार के एक मकान में रहता था आदर्श थाजहाँ शुद्ध वायु का प्रवेश नहीं था। सीढ़ियाँ पानी से भीगी हुई, सत्वेषु मैत्री गुणीषु प्रमोदम् अंधकार पूर्ण फिर भी वे पर्युषण एवं दिवाली पर्व पर वहाँ पहुँचकर क्लेष्टेषु जीवेषु कृपा परत्वं, उनकी खबर लेती थीं एवं उनके सुख-दुःख में सहभागी बनती थीं माध्यस्थ भावं विपरीत वृत्ती, जबकि उनका कोई सम्बन्धी वहाँ नहीं पहुँचता था। इसी सम्बन्धी के सदा ममात्मा विदधातु देवा । जब प्रोस्ट्रेट ग्रन्थि का ऑपरेशन एक नर्सिंग होम में हुआ तब ये विद्वत खण्ड/१४२ शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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