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१. पुरानी से पुरानी संग्रहणी (उदर रोग) में- सिद्ध प्राणेश्वर
रोगानुसार अनुपात रस आधा रत्ती, रामबाण रस आधा रत्ती, स्वर्ण प्रपटी आधा . ज्वर, कफ रोग में-मंदाग्नि रत्ती, मकरध्वज आधा रत्ती, शंखभस्मं एक रत्ती इन शरीर पुष्टी के लिए - बड़ी पीपल का चूर्ण सबको मिलाकर पुड़िया बनाना एवं सुबह शाम शहद और . रक्त पित्त में - दूर्बा (दूब) का रस लेवें भुजा जीरा से लेवें।
बलवृद्धि के लिए - अश्वगन्ध का चूर्ण २. ब्लड सुगर या यूरिन सुगर में- बेल पत्र, मेथीदाना, बबूल पाण्डुरोग में - पुनर्नवा का रस
छाल, गुड़मार पत्र, त्रिफला चूर्ण इन सबको बराबर मात्रा • प्रमेह में - हल्दी चूर्ण, मधु से में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लेवें और एक चम्मच . सन्निपात ज्वर में - कालीमिर्च का चूर्ण सुबह-शाम जल से सेवन करें।
पित्त ज्वर - लोंग का चूर्ण, मधु से यह अनुभूत प्रयोग है और इससे ब्लड सुगर एवं यूरिन . सुगर में काफी लाभ होगा।
सन्धि रोगों में – दाल चीनी, छोटी इलायची और तेजपत्र ३. बवासीर, कब्ज, आमबात में- रोजाना गुड़ के साथ सोंठ, चूर्ण मधु से। पीपल, हरड़, अनारदाना का सेवन करना चाहिए।
शिवा फार्मेसी ४. रक्तपित्त में- गिलोय, नीमपत्ते, कड़वे परवल के पत्ते
२, कालीकृष्ण टैगोर स्ट्रीट, कोलकाता-७०० ००७ इनको एकत्र कर पीसकर चूर्ण बना कर, एक चम्मच जल
या आधा चम्मच शहद के साथ लेवें। ५. अगर नित्य भोजन के साथ आँवला के रस का सेवन
किया जाय तो अम्लपित्त, वमन, अरुचि, खून के विकार एवं वीर्य के विकार नष्ट होकर मनुष्य का शरीर हृष्ट
पुष्ट हो जाता है। ६. पीपल, दाख, मिश्री, हरड़, धनियां, जवासा इनका चूर्ण
कर लेवें। सुबह-शाम एक चम्मच जल या शहद के साथ सेवन करने से जटिल से जटिल कफ, पित्त, गले की
जलन, जी मचलाना दूर हो जाता है। ७. शारीरिक कमजोरी एवं वीर्य क्षीण होने पर- दालचीनी,
छोटी एलायची, जायफल, नागकेशर, वायवडंग, चीतामूल, तेजपत्र, छोटी पीपल, बंशलोचन, तगर, कालीमिर्च, कालातिल, तालीस पत्र, सफेद चन्दन, हरण, आँवला, सोंठ, भीमसेनी कपूर, लोंग, कालाजीरा इन सबको बराबर मात्रा में ले कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर, मिश्री या चीनी पावडर मिलाकर, सुबह-शाम एक चम्मच, गर्म दूध या गाय का घृत और शहद मिलाकर लेवें।
अतएव आयुर्वेद में ऐसे-ऐसे जटिल रोगों को जड़ से मिटा देने की क्षमता है। आयुर्वेद चिकित्सा ही है जो स्थाई लाभ प्रदान करती है।
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
विद्वत् खण्ड/१०७
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