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________________ 7 बनेचन्द मालू फिर दोस्तों से बात करने, फोन की लाईन मिलायें। स्कूल से हीकौन सी पिक्चर जायें, फिर कौन से होटल में खायें, कहां कहां घूमने जायें, मार्केट से क्या क्या खरीद कर लायें, इन्हीं सब कामों की लिष्ट बनायें। आज का लाडला बच्चा पहले समय पर उठते थे। बड़ों को प्रणाम करते थे। मुख से राम राम कहते थे। पढते भी थे और, खेतों, खलिहानों, या घरों में खूब खट के काम करते थे। समय पर खाते थे-खेलते थे, और समय पर आराम करते थे। अब सुबह उठते हैं देर से। उठते ही शिकवे करते हैं ढेर से। प्रणाम की जगह, हॉय और गुडमोरनिंग कहते हैं। आंखें मसलते, उबासी लेते, जोर से चिल्लाकर, बिना मुंह धोये ही रामू को, चाय का आर्डर देते हैं। इतना व्यस्त हो जाता है दिनएक रोज नहींऐसा होता है हर दिन। तो फिर पढ़ने और काम करने का, समय ही कहां है। साहबजादे तो वर्षों बाद भी, जहां के तहां है। कहते हैं तो कहते हैं - बताइये, भगवान ने भी कितने जुल्म ढाये। दिन रात में केवल चौबीस घंटे ही बनाये। बारह घंटे तो ऊपर के व्यस्त प्रोग्राम में बीते, फिर बाकी टाईम, खाने और सोने में जाये। तो फिर पढ़ाई और काम का समय ही कहां बचा? जब इस तरह की दिनचर्या में, पलता है भारत का भावी कर्णधार, भारत का होनहार, आज का लाडला बच्चा, तो इस पीढ़ी की जब निकलेगी जमात, जिससे बनेगा भारत का भावी समाज, तो देश कितनी करेगा तरक्की? सोच कर सिहर जाता हूंहे भगवान, इनको कहीं पीसनी न पड़े, फिर किसी फिरंगी की चक्की। काम करना तो हीनता है। अखबार के पत्रे पलटते-पलटते, कितने घंटे बीत गये, गिनता है। इसी दर्द से कहता हूंवतन को फिर कहीं गिरवी न रख देना नादानों। शहीदों ने बड़ी मुश्किल से ये कर्ज चुकाये हैं। अपनी जिन्दगी के चिराग बुझाकर, हमारे घरों के दीप जलाये हैं। शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्वत् खण्ड/१०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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