SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ० डॉ० प्रेमशंकर त्रिपाठी 'कागद की लेखी' के बजाय 'आंखिन देखी' पर भरोसा करने के कारण ही उनका साहित्य प्रभविष्णुता - संपन्न है । घुमक्कड़ी पर केन्द्रित तथा १९४८ में प्रकाशित १६८ पृष्ठ की कृति 'घुमक्कड़ शास्त्र' की भूमिका में राहुल ने लिखा है- " घुमक्कड़ी का अंकुर पैदा करना इस शास्त्र का काम नहीं, बल्कि जन्मजात अंकुरों की पुष्टि, परिवर्धन तथा मार्ग प्रदर्शन इस ग्रंथ का लक्ष्य है।" यद्यपि लेखक ने इस कृति में यह दावा नहीं किया है कि 'घुमक्कड़ों के लिए उपयोगी सभी बातें सूक्ष्म रूप से यहाँ (कृति में आ गई है, तथापि जिन शीर्षकों में कृति को विभाजित किया गया है वे भ्रमण के महत्व के साथ-साथ घुमक्कड़ी से संबंधित विविधि आयामों का विस्तृत विवेचन करते हैं। पुस्तक का पहला निबन्ध है 'अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा' । निबन्ध की शुरुआत में लेखक ने शीर्षक की संस्कृतनिष्ठ भाषा का कारण बताते हुए लिखा है- "आखिर हम शास्त्र लिखने जा रहे हैं, फिर शास्त्र की परिपाटी को तो मानना ही पड़ेगा।" "जिज्ञासा' के बारे में वे कहते -" शास्त्रों में जिज्ञासा ऐसी चीज के लिए होनी बतलाई गई है जो कि श्रेष्ठ तथा व्यक्ति और समाज के लिए परम हितकारी घुमक्कड़शास्त्री राहुल हो।" इसी क्रम में लेखक ने ब्रह्म को जिज्ञासा का विषय बनाने के लिए व्यास का उल्लेख किया है और यह घोषणा की है कि" मेरी समझ में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है घुमक्कड़ी। घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता । " राहुलजी ने दुनिया को गतिशील बनाने तथा विकास के रास्ते प्रशस्त करने का श्रेय घुमक्कड़ी को ही दिया है। 'घुमक्कड़ - शास्त्र' के तीसरे पृष्ठ में वे लिखते हैं- "कोलम्बस और वास्को द गामा दो घुमक्कड़ ही थे जिन्होंने पश्चिमी देशों के बढ़ने का रास्ता खोला ।" घुमक्कड़ धर्म की आवश्यकता का बखान करते हुए उन्होंने लिखा है- "जिस जाति या देश ने इस धर्म को अपनाया, वह चारों फलों का भागी हुआ और जिसने इसे दुराया, उसके लिए नरक में भी ठिकाना नहीं । आखिर घुमक्कड़ धर्म को भूलने के कारण ही हम सात शताब्दियों तक धक्का खाते रहे, ऐरे-गैरे जो भी आये, हमें चार लात लगाते गए।" बहुआयामी कृतित्व वाले महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इतिहास, दर्शन, धर्म, भाषाशास्त्र, विज्ञान, राजनीति आदि विविध विषयों पर अनेक महत्वपूर्ण निबन्ध लिखे हैं तथा बहुमूल्य कृतियों का सृजन किया है। उनके कहानीकार, आलोचक, निबन्धकार, नाटककार, आत्मकथा लेखक तथा जीवनीकार रूप ने हिन्दी साहित्य को विशिष्ट समृद्धि प्रदान की है। एक कट्टर वैष्णव परिवार में जन्मे राहुल ने पहले आर्य समाज और फिर बौद्ध धर्म के रास्ते से गुजरते हुए मार्क्सवाद की मंजिल तय की थी। एक साहित्यकार या लेखक के रूप में ही नहीं, विचारक और चिन्तक के रूप में भी उनकी व्यापक प्रतिष्ठा रही है। सामाजिक या राजनीतिक कार्यकर्ता की हैसियत से विविध गतिविधियों के संचालन एवं क्रियान्वयन में रुचिपूर्वक भाग लेने के साथ-साथ उन्होंने गंभीर शोधकर्ता के दायित्व का भी भलीभाँति निर्वाह किया था। चाहे असहयोग आंदोलन या किसान आन्दोलन में जनता के साथ सक्रिय भागीदारी हो या बौद्ध दर्शन और बौद्ध साहित्य के अनुद्घाटित अंश की अनुसंधानपरक व्याख्या- दोनों भिन्न क्षेत्रों में राहुल के सहज एवम् पाण्डित्यपूर्ण व्यक्तित्व की झलक पाई जा सकती है। वास्तव में राहुल के सम्पूर्ण साहित्य में जो तन्मयता है, गांभीर्य है उसका कारण उनका व्यापक जीवनानुभव है; भ्रमण के दौरान जीवन की बहुरंगी छटाओं तथा विरूपताओं का साक्षात्कार है । शिक्षा - एक यशस्वी दशक Jain Education International अपने कथ्य के विवेचन में लेखक ने शैली को अत्यंत रोचक तथा भाषा को सहज बनाए रखा है। राहुल की मान्यता है कि दुनिया के अधिकांश धर्मनाक घुमक्कड़ रहे हैं। बुद्ध को सर्वश्रेष्ठ घुमक्कड़ घोषित करते हुए राहुल ने बताया है कि बुद्ध ने सिर्फ पुरुषों के लिए ही नहीं स्त्रियों के लिए भी घुमक्कड़ी का उपदेश दिया था। राहुल लिखते हैं- " घुमक्कड़ धर्म, ब्राह्मण धर्म जैसा संकुचित धर्म नहीं है, जिसमें स्त्रियों के लिए स्थान न हो। स्त्रियाँ विद्वत खण्ड / ८७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy