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________________ पीटर जी बीडलर मैं पढ़ाता क्यों हूँ? तुम अध्यापकी क्यों करते हो? मेरे दोस्त ने पूछा क्योंकि मैंने उसे बताया था कि मैं स्कूल में किसी प्रशासकीय पद के लिए आवेदन नहीं देना चाहता। इस बात ने उसे उलझन में डाल दिया। आखिर मैं उस रास्ते को क्यों नहीं अपनाना चाहता था जो जाहिर है उस लक्ष्य की ओर ले जाता है जिसे सब पाना चाहते हैं यानि धन और अधिकार। मैं इसलिए नहीं पढ़ाता कि पढ़ाना मेरे लिए आसान है। रोटीरोजी कमाने के लिए मैने बुलडोजर की मरम्मत, बढ़ईगीरी, विश्वविद्यालय का प्रशासन और लेखन आदि जितने भी काम किए हैं, पढ़ाना उनमें सबसे मुश्किल है। जहाँ तक मेरा सवाल है, पढ़ाने से आँखें लाल हो उठती हैं, शरीर बेजान और मन खिन्न हो जाता है। आँखें इसलिए लाल हो जाती हैं क्योंकि पढ़ाने के लिए मैं अपने को कभी तैयार नहीं पाता, चाहे रात को मैने कितनी भी देर तक बैठकर तैयारी क्यों न की हो, हथेलियाँ पसीने से इसलिए भीग जाती हैं क्योंकि कक्षा में प्रवेश करने से पहले मुझे हमेशा घबराहट होने लगती है। मुझे हमेशा लगता है कि छात्रों पर मेरी बेवकूफी जरूर जाहिर हो जाएगी। मन इसलिए बुझ जाता है क्योंकि एक घंटे बाद जब मैं कक्षा से बाहर आता हूँ तो मुझे इस बात का निश्चय हो चुका होता है कि आज मैंने छात्रों को पहले से कहीं ज्यादा उबाया है। मेरे पढ़ाने की वजह यह भी नहीं है कि मैं प्रश्नों के उत्तर जानता हूँ, या यह कि मैं इतना कुछ जानता हूँ कि उस जानकारी को दूसरों में बाँटने के लिए मजबूर हो जाता हूँ। छात्रों को अपनी पढ़ाई हुई बातों के नोट लेते देख कर मुझे सचमुच कभी-कभी बड़ा आश्चर्य होता है। फिर भी मैं क्यों पढ़ाता हूँ? मैं इसलिए पढ़ाता हूँ क्योंकि जिस ढंग से पढ़ाई का ढर्रा चलता है, वह मुझे पसंद है। जब स्कूल की छुट्टियाँ होती हैं तो मुझे चिंतनमनन, अनुसंधान और लेखन का अवसर मिलता है- ये सब मेरे पढ़ाने के ही हिस्से हैं। .मैं इसलिए पढ़ाता हूँ कि यह परिवर्तन पर आधारित है। पाठ्य सामग्री वही होते हुए भी मुझ में परिवर्तन आता है - और सबसे बड़ी बात यह है कि मेरे छात्रों में भी परिवर्तन आता है। ___मैं इसलिए पढ़ाता हूँ कि मैं खुद गलती करने, खुद सबक सीखने, अपने आप को और अपने छात्रों को प्रेरित करने की स्वतंत्रता को पसंद करता हूँ। ___मैं इसलिए पढ़ाता हूँ कि मैं ऐसे प्रश्न करना पसंद करता हूँ जिनसे छात्रों को उत्तर देने में मेहनत करनी पड़े। संसार बुरे प्रश्नों के अच्छे उत्तरों से भरा पड़ा है। अध्यापन के कारण कभी-कभी मेरे सामने अच्छे प्रश्न भी आ जाते हैं। मैं इसलिए पढ़ाता हूँ कि सीखना पसंद करता हूँ। वास्तव में, अध्यापक के रूप में मेरा अस्तित्व तभी तक है जब तक मैं सीख रहा हूँ। मेरे पेशेवर जीवन की एक सब से बड़ी खोज यह है कि मैं जो जानना चाहता हूँ, वह सबसे अच्छा पढ़ा सकता हूँ। मैं इसलिए पढ़ाता हूँ कि मुझे इस पेशे के स्वांग में अपने आप को और अपने छात्रों को इस मिथ्या संसार से बाहर निकालने और वास्तविक दुनिया में प्रवेश करने के उपाय खोजने में आनंद आता है। मैंने एक बार एक पाठ्यक्रम चलाया था जिसका शीर्षक था : "मशीनी समाज में आत्मनिर्भरता'। मेरे १५ छात्रों ने एमरसन, थोरो और हक्सले को पढ़ा। उन्होंने डायरियाँ लिखीं, सत्र के दौरान लंबे निबंध लिखे। यही नहीं, हमने एक कंपनी की भी स्थापना की। उसके लिए हमने एक बैंक से ऋण लिया, खस्ता हालत वाला एक मकान खरीदा और उसको नया रूप देकर आत्म-निर्भरता के सिद्धांत को अमली जामा पहनाया। अर्धवार्षिक सत्र समाप्त होने पर हमने उस मकान को बेच दिया, अपना कर्जा चुका दिया, अपने करों का भुगतान कर दिया और जो मुनाफा हुआ, उसे कंपनी के सदस्यों में बाँट दिया। निश्चय ही यह अग. जी का कोई सामान्य पाठ्यक्रम नहीं था। लेकिन भावी वकील, अकाउंटेंट और व्यवसायी के रूप में कार्य शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्वत खण्ड/७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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