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इन माध्यमों को फैशन की तरह देख लेने की कल्पना बढ़ उसने नागरिकीय मानसिकता यें यह सवाल खड़ा कर दिया चली हो परन्तु ग्रामीण या पारम्परिक लोक माध्यम अपने कि कल कोई नई तकनीक आने वाली है।
म्पराओं के जन्मदाता और नये माध्यमों के इसका आलम यह हुआ कि इन माध्यमों में भी विकसित बीच भी रहे हैं।
अति विकसित और नव विकसित माध्यमों की रेलमपेल रही इस प्रकार देखा जाय तो आज पारम्परिक लोक माध्यम और अब सद्य तकनीक अथवा लेटेस्ट टेक्नोलॉजी एक कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं। यह भी सोचा जा सकता है कहावत के रूप में सामने है। संचार माध्यमों में आज रेडियो कि कई माध्यम तो अर्थहीन या नकारा करार दिये गये हैं। और दूरदर्शन की बात क्या करें, उपग्रहीय संचार माध्यम इसी कारण जहां लोक कलाकारों का अभाव होता जा रहा सामने हैं और विश्व के किसी भी कोने में होने वाली घटना, है वहीं लोगों का अथवा पूरे समुदाय का भी रवैया, दृष्टिकोण दुर्घटना अथवा आयोजन को तत्काल अथवा साथ-साथ किसी . बदलता जा रहा है।
अन्य कोने में देखा जा सकता है। ___ . पारम्परिक लोकमाध्यम आज के दौर में जिन चुनौतियों फिल्मों में भी आज कई तकनीकें सामने हैं तथा सदियों से लोहा ले रहे हैं अथवा जिन चुनौतियों से हार मान रहे हैं, पुराने जीवों को भी सजीव और साकार रूप में फिल्माये जाने वे तीन विचारों पर निर्भर है -
की आधुनिककृत पद्धतियां सामने आई हैं जिनके मूल में १) बदलाव
कम्प्यूटर है। आज दूर संवेदी तकनीक भी संचार माध्यमों के अ) तकनीक के स्तर पर
साथ है। ब) जीवन स्तर पर
इसके विपरीत पारम्परिक संचार माध्यमों के साथ यह २) पलायन
विकासक्रम नहीं देखा जा सकता। इसी कारण जमाने की अ) कलाकारों की पराङ्मुखता
हवा वाले किसी व्यक्ति के सामने यदि पारम्परिक या ठेठ ब) दर्शक या श्रोता समुदाय का दिशा हीन होना । देहात की बात की जाती है तो बेमानी लगाती है। ३) दिखावा
___ यह भी एक युगीन सच है कि नवीकृत माध्यमों को क) आयोजन के नाम पर
अधुनातन करने की दशा में सरकारें और वैज्ञानिक कितना ब) सामुदायिक सोच के स्तर पर
चिंतन और अर्थ नियोजन या अर्थ निवेशन कर रहे हैं उतना इस प्रकार देखा जाये तो आज पारम्परिक लोक माध्यम पारम्परिक माध्यमों के साथ देखना तो दूर, सोचना भी सम्भव सीमित या स्थगित होते जा रहे हैं जबकि इनका विकास और नहीं है। कालक्रम बहुत लम्बा नजर आता है। यह जान पड़ता है कि जीवन शैली में नवीनता ये माध्यम सैकड़ों और हजारों वर्षों के कालक्रम में जो भारत की ही क्या बात करें, विश्व की ही जीवन शैली अपना स्वरूप तय कर पाये, वह आधुनिक संचार क्रांति के में एकदम बदलाव आया है। न केवल पारिवारिक सम्पदाओं आते ही विगत चार पांच दशकों में बौने और वामनाकार बल्कि सामाजिक रिश्तों पर भी इस बदलाव का असर देखा होते होते अंडाकार होते चले जा रहे हैं।
जा सकता है। आज की जीवन शैली नवीनता की अनुगामिनी यदि विस्तार से इनके समक्ष उपस्थित चुनौतियों पर है। परम्परा या पौराणिकता को वह छोड़ देना चाहती है। नजर डालें तो मुख्य चुनौतियां निम्न जान पड़ती हैं- नवीनता की अनुशायिनी होने से जहां जीवन को अर्थ मिला इलेक्ट्रॉनिक क्रांति
है वहीं वह अपनी परम्परा से टूटे पत्ते की तरह कट गई है। बीसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध विद्युत क्रांति के बाद आज के जीवन के पास पैसा है किन्तु समय नहीं है। वह इलेक्ट्रॉनिक क्रांति का रहा और इस दौर में सर्वाधिक लोकशिक्षण की बात भूल चुका है जबकि पारम्परिक माध्यम विकसित रूप संचार माध्यमों का सामने आया। इस दौर में लोकशिक्षण के बहुआयाम लिए उपस्थित होते रहे हैं। जहां अति यांत्रिकता बढ़ी वहीं श्रव्य और दृश्य माध्यम भी बदलाव के इस दौर ने पारम्परिक माध्यमों पर न केवल नवीन रूप और और तड़कभड़क लेकर सामने आये। नब्बे आघात किया अपितु उनका सर्वदृष्टि दमन भी किया है। के दशक में संचार माध्यमों का जो स्वरूप सामने आया
विद्वत् खण्ड/४०
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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