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________________ -- ककार से लेकर हकार पर्यन्त व्यंजन बीजसंज्ञक हैं और अकारादि स्वर शक्तिरूप हैं। मन्त्रबीजों की निष्पत्ति बीज और शक्ति के संयोग से होती है। सारस्वतबीज, मायाबीज, शुभनेश्वरीबीज, पृथिवीबीज, अग्नि बीज, प्रणवबीज, मारुतबीज, जलबीज, आकाशबीज आदि की उत्पत्ति उक्त हल और अचों के संयोग से हुई है। यों तो बीजाक्षरों का अर्थ बीजकोश एवं बीज व्याकरण द्वारा ही ज्ञात किया जाता है, परन्तु यहाँ पर सामान्य जानकारी के लिए ध्वनियों की शक्ति पर प्रकाश डालना आवश्यक है। अ = अव्यय, व्यापक, आत्मा के एकत्व का सूचक, शुद्धबुद्ध ज्ञानरूप, शक्तिद्योतक, प्रणव बीज का जनक। आ - अव्यय, शक्ति और बुद्धि का परिचायक, सारस्वतबीज का जनक, मायाबीज के साथ कीर्ति, धन और आशा का पूरक। इ = गत्यर्थक, लक्ष्मी-प्राप्ति का साधक, कोमल कार्यसाधक, कठोर कर्मों का बाधक, वह्निबीज का जनक। ई = अमृतबीज का मूल, कार्यसाधक, अल्पशक्तिद्योतक, ज्ञानवर्द्धक, स्तम्भक, मोहक, जृम्भक। उ = उच्चाटन बीजों का मूल, अद्भुत शक्तिशाली, श्वासनलिका द्वारा जोर का धक्का देने पर मारक। ऊ = उच्चाटक और मोहक बीजों का मूल, विशेष शक्ति का परिचायक, कार्यध्वंस के लिए शक्तिदायक। ऋ = ऋद्धिबीज, सिद्धिदायक, शुभ कार्यसम्बन्धी बीजों का धा बाजा का मूल, कार्यसिद्धि का सूचक। ल = सत्य का संचारक, वाणी का ध्वंसक, लक्ष्मीबीज की उत्पत्ति का कारण, आत्मसिद्धि में कारण। ए = निश्चल, पूर्ण, गतिसूचक, अरिष्ट निवारण बीजों का जनक, पोषक और संवर्द्धक। ऐ = उदात्त, उच्चस्वर का प्रयोग करने पर वशीकरण बीजों का जनक, पोषक और संवर्द्धक। जलबीज की उत्पत्ति का कारण, सिद्धप्रद कार्यों का उत्पादकबीज, शासन देवताओं का आह्वान करने में सहायक, क्लिष्ट और कठोर कार्यों के लिए प्रयुक्त बीजों का मूल, ऋण विद्युत् का उत्पादक। ओ = अनुदात्त, निम्न स्वर की अवस्था में मायाबीज का उत्पादक, लक्ष्मी और श्री का पोषक, उदात्त, उच्च स्वर की अवस्था में कठोर कार्यों का उत्पादक बीज, कार्यसाधक, निर्जरा का हेतु, रमणीय पदार्थों की प्राप्ति के लिए प्रयुक्त होनेवाले बीजों में अग्रणी, अनुस्वारान्त बीजों का सहयोगी। औ = मारण और उच्चाटन सम्बन्धी बीजों में प्रधान, शीघ्र कार्यसाधक, निरपेक्षी, अनेक बीजों का मूल। अं = स्वतन्त्र शक्तिरहित, कर्माभाव के लिए प्रयुक्त ध्यानमन्त्रों में प्रमुख, शून्य या अभाव का सूचक, आकाश बीजों का जनक, अनेक मृदुल शक्तियों का उद्घाटक, लक्ष्मी बीजों का मूल। अः = शान्तिबीजों में प्रधान, निरपेक्षावस्था में कार्य असाधक, सहयोगी का अपेक्षक। क = शक्तिबीज, प्रभावशाली, सुखोत्पादक, सन्तानप्राप्ति की कामना का पूरक, कामबीज का जनक। ख = आकाशबीज, अभावकार्यों की सिद्धि के लिए कल्पवृक्ष, उच्चाटन बीजों का जनक। ग = पृथक् करनेवाले कार्यों का साधक, प्रणव और माया बीज के साथ कार्य सहायक। घ =स्तम्भक बीज, स्तम्भन कार्यों का साधक, विघ्नविघातक, मारण और मोहक बीजों का जनक। ङ = शत्रु का विध्वंसक, स्वर मातृका बीजों के सहयोगानुसार फलोत्पादक, विध्वंसक बीज जनक। च = अंगहीन, खण्डशक्ति द्योतक, स्वरमातृकाबीजों के अनुसार फलोत्पादक, उच्चाटन बीज का जनक। छ = छाया सूचक, माया बीज का सहयोगी, बन्धनकारक, आपबीज का जनक, शक्ति का विध्वंसक, पर मृदु कार्यों का साधक। ___ ज = नूतन कार्यों का साधक, शक्ति का वर्द्धक, आधि-व्याधि क का शामक, आकर्षक बीजों का जनक। झ = रेफयुक्त होने पर कार्यसाधक, आधि-व्याधि विनाशक, शक्ति का संचारक, श्रीबीजों का जनक। ञ = स्तम्भक और मोहक बीजों का जनक, कार्यसाधक, साधन का अवरोधक, माया बीज का जनक। ट = वह्निबीज, आग्नेय कार्यों का प्रसारक और निस्तारक, अग्नितत्व युक्त, विध्वंसक कार्यों का साधक। ठ = अशुभ सूचक बीजों का जनक, क्लिष्ट और कठोर कार्यो का साधक, मृदुल कार्यों का विनाशक, रोदन-कर्ता, अशान्ति का जनक, सापेक्ष होने पर द्विगुणित शक्ति का विकासक, वह्निबीज। ड = शासन देवताओं की शक्ति का प्रस्फोटक, निकृष्ट कार्यों की सिद्धि के लिए अमोघ, संयोग से पंचतत्वरूप बीजों का जनक, निकृष्ट आचार-विचार द्वारा साफल्योत्पादक, अचेतन क्रिया साधन। ढ - निश्चल, मायाबीज का जनक, मारण बीजों में प्रधान, शान्ति का विरोधी, शक्तिवर्धक। ण = शान्ति सूचक, आकाश बीजों में प्रधान, ध्वंसक बीजों का जनक, शक्ति का स्फोटक। विद्वत खण्ड/४ शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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