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________________ खण्ड १ / जीवन ज्योति हावड़ा से पहले लिलुआ ग्राम में नया मन्दिर बना था, उसके दर्शन किये। वहाँ के जैनों के आग्रह पर एक दिन रुके । हावड़ा ब्रिज पहुँचे। वहाँ स्वागतार्थ कलकत्ता के श्रावक उपस्थित थे। संघ के साथ बड़े बाजार स्थित मन्दिर के दर्शन-वन्दनकर ११ नं० उपाश्रय पहुँचे। मांगलिक सुनाया और प्रभावनादि का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। प्रतिदिन जैन भवन में व्याख्यान होता था । त्याग-तपस्या-प्रत्याख्यान आदि का माहौल पूर्ववत् (२०२६ के चातुर्मास) जैसा ही था । वैरागिन बहनें हमारे पास रहकर ही धार्मिक अध्ययन कर रही थीं। पूज्याश्री श्रीमद् देवचन्द्रजी म. रचित द्रव्य प्रकाश का अनुवाद कर रही थीं। चातुर्मास सानन्द संपूर्ण हुआ। चैत्री पूनम की शोभा यात्रा देखते हुए हम लोग बद्रीदास टेम्पिल पहुँचे। पूज्याश्री शशिप्रभाजी म. सा. और मुझको (प्रियदर्शनाजी) साहित्य रत्न की परीक्षा देनी थी। परीक्षा पोष बदी में थी। अतः एक महीने तक भवानीपुर रुके । परीक्षा हेतु पुनः शहर में आ गये। खड्गपुर में भगिनी त्रय का दीक्षा समारोह खड़गपूर के लोगों ने आकर बताया कि दीक्षा का शुभ मुहूर्त बसन्त पंचमी का है और उस दिन तक पधारने की हम लोगों से विनती की। शिष्या-लाभ जानकर हम लोगों ने विहार किया और मार्ग के क्षेत्रों को फरसते हुए यथासमय खड्गपुर पहुँचे । श्री रम्भाश्री जी म. सा. भी खड्गपुर संघ के अत्याग्रह से टाटानगर चातुर्मास पूर्णकर खड्गपुर पहुंचे गये। श्रीमान भीखमचन्दजी सा. व भाई प्रकाशचन्दजी कोचर ने हर्षोत्साहपूर्वक शान्ति स्नात्र, महापूजन सहित अठाई महोत्सव कराये । दीक्षा के प्रथम दिन वर्षीदान का भव्य वरघोड़ा जिसमें पालखी में भगवान भी साथ थे और हम लोग भी थे, मध्य बाजार से गुजर रहा था तो सभी लोगों के भावोद्गार निकले-इतनी छोटी सी उम्र में संयमी जीवन का स्वीकार ! धन्य हैं ये लोग ! इस प्रकार त्यागमार्ग की अनुमोदना कर रहे थे। दूसरे दिन-माघ सुदी ५ को शुभ मुहूर्त में पूज्याश्री चन्दश्रीजी म. सा., पू. श्री रम्भाश्री जी म. सा. आदि की निश्रा में तीनों बहनों की दीक्षा सानन्द सम्पन्न हुई। निर्मला का नाम 'दिव्यदर्शनाजी' हीरामणि का नाम 'तत्वदर्शनाजी' और कमल का नाम 'सम्यग्दर्शनाजी' रखा गया तथा तीनों को पूज्या गुरुवर्या श्री सज्जनश्री जी म. सा. की शिष्याएँ घोषित की गयीं। खड़गपुर में ही नहीं अपितु संपूर्ण बंगाल में ही संभवतः साध्वी दीक्षा का यह प्रथम अवसर था । अतः १५ दिन तक आस-पास के बंगाली सज्जन आते रहे तथा नूतन साध्वीजी के दर्शन एवं उनके परिवारीजनों के भाग्य की सराहना करते रहे । वी. नि. की २५वीं शताब्दी के उपलक्ष्य में पावापुरी चातुर्मास : वि. सं. २०३१ तीर्थकर भगवान की २५वीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष्य में भगवान की निर्वाण भूमि पावापुरी में विराट आयोजन हो रहा था । यद्यपि हमारा विचार नूतन साध्वियों की बड़ी दीक्षा कराने हेतु मध्यप्रदेश जाने का था किन्तु श्रद्धेय पूज्य अनुयोगाचार्य श्री कान्तिसागरजी म. सा. का आदेश पावापुरी रुकने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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