SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड १ | जीवन ज्योति ५ कलकत्तावासियों से समारोहपूर्वक पुनः चातुर्मास के आग्रह के साथ भावभीनी विदाई लेकर हम लोगों ने खड्गपुर की ओर कदम बढ़ाये । सैंकड़ों व्यक्तियों के साथ हावड़ा पहुँचे । बीकानेर के प्रसिद्ध श्रावक श्री रामपुरियाजी के यहाँ रुके, आपकी भावना प्रशंसनीय है, साथ आये सभी लोगों का स्वागत सत्कार किया। हम लोगों से भी दो दिन रुककर बड़ी पूजा और व्याख्यान आदि का आग्रह किया। दूसरे दिन उनके घर पर ही प्रातः ६ बजे से व्याख्यान हुआ जिसमें हावड़ा निवासियों के अतिरिक्त शहर के भी बहुत लोग उपस्थित हुए। रामपुरियाजी के यहाँ ही सभी का भोजन था। दोपहर की पूजा के बाद सभी लोग चले गये । हमने भी आगे प्रस्थान कर दिया। मार्ग में कोयलाघाट आये । यहाँ दिगम्बर-श्वेताम्बर का एक ही मन्दिर है। एक श्वेताम्बर प्रतिमा वहीं की नदी में निकली थी, वही मन्दिर में विराजमान है । बड़ी भव्य मनोहर प्रतिमा है। इधर साधु-साध्वियों का आगमन बहुत कम होता है । मारवाड़ी जैनों के काफी घर हैं। हम लोगों से व्याख्यान का आग्रह किया। दोपहर में व्याख्यान हुआ। व्याख्यान सुनकर उन लोगों का धर्मोत्साह जाग उठा। तप-त्याग-प्रत्याख्यानों की बाढ़-सी आ गई। किसी ने रात्रि भोजन का त्याग किया तो किसी ने कन्दमूल का; किसी ने नवकार मन्त्र की माला फेरने का नियम लिया, तो किसी ने नवकारसी का। इस प्रकार कोयलाघाट में धर्म व्यापार अच्छा रहा। यहाँ से विहार कर ५वें दिन खड्गपुर पहुँचे । नगर से लगभग १ किलोमीटर दूर गोल बाजार स्थित धर्मशाला में रुके । यहाँ गुजराती जैनों के १०-१२ घर हैं। खड्गपुर से दर्शनार्थियों का तांता लग गया। खड्गपुर प्रवेश बड़े धूमधाम से खड्गपुर में प्रवेश किया । धर्मशाला में पहुँचे । वहाँ एक कमरे में बिना प्रतिष्ठा के ही भगवान विराजमान थे, उनके दर्शन किये, वहीं पूज्याश्री चन्द्रप्रभाश्री जी म. सा., श्री धरणीन्द्र श्री जी म. व दिव्यप्रभाजी म. पहले से ही ठाणापति विराजमान थे। हम भी वहीं रुके । सबको मांगलिक सुनाई। सबने विदा ली। सम्पूर्ण संघ में हर्ष व्याप्त हो गया लेकिन वर्षों की भावना पूरी हो जाने से सर्वाधिक हर्षोल्लास श्री चांदमलजी साहब को था। व्याख्यान शुरू हुए । यद्यपि हम लोग १०-१५ दिन ही रुकना चाहते थे लेकिन लोगों के आग्रह से चार महीने तक रुके । आचारांग सूत्र की एक मात्र सूक्ति 'खणं जाणाहि पंडिए' पर ही गुरुवर्याश्री की तत्वमेधिनी प्रज्ञा अमृत वर्षा करती रही । सभी लोग उनकी अगाध विद्वत्ता से प्रभावित हुए। धर्मनिष्ठ चाँदमलजी सा. प्रतिदिन पूजा के उपरान्त मांगलिक सुनने आते थे। गुरुवर्याधी ने उन्हें नूतन मन्दिर बनवाने की प्रेरणा दी । बात उनके दिल में उतर गई। सर्वसम्मति से जैन भवन के ऊपर ही मन्दिर बनवाने का निर्णय कर लिया। फाल्गुन शुक्ला ५ के शुभ दिन गुरुवर्याश्री के कर कमलों से मंदिर का शिलान्यास हो गया। मूल मन्दिर चाँदमलजी बनवा रहे थे; पर सभामण्डप के लिए चन्दा होने लगा। उसी समय श्रीमती सून्दरबाई कोचर (श्री भीखमचन्दजी कोचर की धर्मपत्नी) अपनी द्वादश वर्षीया पुत्री कमल को सामने कर हर्षातिरेक में बोल उठी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy