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________________ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्री जयपुर संघ ने पूज्या प्रवतिनीजी के देवलोकगमनोपलक्ष में धूम-धाम से शांतिस्नात्र, महापूजन, अठाई महोत्सव आदि करवाये । अन्य अनेक स्थानों पर भी अठाई महोत्सव हुए। पूज्या जैनकोकिला विचक्षणश्रीजी को प्रवर्तिनी के पद पर अधिष्ठित किया गया। चरितनायिकाजी के विशिष्ट गुण-सामान्यतया एक स्थान पर रहने से उस स्थान के प्रति राग हो जाता है और श्रावकगण भी उपेक्षा करने लगते हैं। कहा भी है-अतिपरिचयात् अवज्ञा । लेकिन यह सब विशिष्ट व्यक्तित्व वालों के लिए सत्य नहीं । चरितनायिकाजी विशिष्ट व्यक्तित्व वाली हैं। वे एक स्थान (जयपुर) पर गुरुवर्या की निश्रा में २२ वर्ष तक रहीं, फिर भी श्रावक-श्राविका उन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखते रहे। ___ इसका कारण रहा, उनके विशिष्ट गुण । आप स्नेह, सरलता, शुचिता, उदारता की प्रतिमूर्ति हैं । जहाँ अन्तो तहा बहिं आदर्श- उनमें मूर्तिमान है । एकान्त में हों अथवा समाज में--सर्वत्र एक समान ही रूप, व्यवहार, आचार-विचार और ज्ञान में, अध्ययन में, जपाराधना में निमग्नता, सर्वथा निखालिस स्वर्ण, दोष, खोट, मल का नाम निशान भी नहीं।। यही इनकी कुछ विशेषताएँ हैं, जिनके कारण दीर्घकाल तक एक स्थान पर रहकर भी निर्दोष रहीं। वैराग्यवती सुश्री किरण की दीक्षा श्री कमलचन्दजी सा. बांठिया की सुपुत्री सुश्री किरण वैरागिन के रूप में आपश्री के पास रह रही थी। पू. शशिप्रभाजी म. सा. के साथ ही इसने भो उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर से मैट्रिक की परीक्षा दी थी। गृहस्थाश्रम में कौमुदी और अमरकोश प्रारम्भ कर दिये थे। धार्मिक शिक्षा भी त्वरित गति से हस्तगत कर रही थी। उन दिनों पू. श्री शशिप्रभाजी को संस्कृत का अध्ययन कराने के लिए उद्भट विद्वान पण्डित प्रवर चण्डीप्रसाद आचार्य, जो महाराजा संस्कृत कालेज के प्राचार्य थे व प्रिंसीपल पद पर भी रह चुके थे, वे आते थे । उन्हीं की सत् प्रेरणा से उन्हीं के द्वारा किरण ने भी संस्कृत प्रवेशिका को पढ़ाई की और निर्धारित समय में परीक्षा देकर फर्स्ट क्लास मार्क्स प्राप्त किये । उनकी (किरण को) वैराग्य भावना दिनानुदिन अभिवद्धित हो रही थी। पूज्या प्रवर्तिनीजी के स्वर्गवास के वाद उनका आग्रह बहुत बढ़ गया। उनके वैराग्य की कई कठिन परीक्षाएँ भी ली गईं, पर वे उन सब में सफल हुईं। उनकी दृढ़ता से प्रभावित होकर ताऊजी सुगनचन्दजी बांठिया, पिताजी कमलचन्दजी बांठिया आदि सभी परिवारीजनों ने स्वीकृति प्रदान कर दी। ___ आषाढ़ शुक्ला ६ के दिन तपागच्छीय श्री विशालविजयजी म. श्री राजशेखरजी म. की नित्रा में एवं पूज्याश्री कल्याणश्रीजी म. सा. आदि के सान्निध्य में बाँठिया परिवार ने श्री संघ के सहयोग से त्रिपोलिया स्थित आतिश मार्केट में खूब धूमधाम से विराट समारोह के साथ वि. सं. २०२४ में सुधी किरण की दीक्षा सम्पन्न कराई। पूज्य श्री विशाल विजयजी म. ने सम्पूर्ण क्रिया खरतरगच्छ के अनुसार करवाई । किरण का दीक्षोपरान्त नाम प्रियदर्शनाजी रखा गया और श्री सज्जनश्रीजी की शिष्या घोषित की गयीं। चातुर्मास अत्यन्त निकट था और बाल साध्वी प्रियदर्शना भी जयपुर की थी, अतः जयपुर संघ के अत्यधिक आग्रह पर चरितनायिकाजी ने सं. २०२४ का चातुर्मास जयार में हो किया। इस चातुर्मास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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