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________________ खण्ड ५ : नारी – त्याग, तपस्या, सेवा की सुरसरि १७१ परिग्रह की दूसरी बुराई विलासिता है । धन जिन गलत रास्तों से एकत्र हुआ है उसका खर्च भी उसी तरह के व्यसनों की पूर्ति में होता है। परिवार के सदस्य यदि इस परिग्रह के कारण व्यसनों के आदी हो गये तो एक दिन महिलाओं को इज्जत से जीना भी मुश्किल हो जायेगा । अतः यदि परिवार और समाज को परिग्रह के दुष्परिणामों से बचाना है तो महिलाओं का यह प्रथम कर्तव्य है कि वे परिवार के सदस्यों को व्यसनों से मुक्त रहने की प्रेरणा दें। माँ बच्चे की पहली पाठशाला होती है | यदि वह स्वयं सादगीपूर्ण जीवन जियेगी तो वह अपनी संतान को व्यसनों में फँसने से रोक सकती है । पहले जैन समाज व्यसनों से सर्वथा मुक्त था इसीलिये वह आज समर्थ और धनी समाज बन सका है । किन्तु यदि जैन समाज भी खर्चीले व्यसनों में लिप्त हो गया तो उसे दरिद्र बनने में समय नहीं लगेगा । परिग्रह का तीसरा परिणाम है-क्रूरता । असीमित इच्छाओं की पूर्ति के लिये व्यक्ति अपने धर्म व कर्तव्य से अन्धा होकर धन कमाता है । इसमें वह इतना क्रूर हो जाता है कि छोटे-बड़े प्राणियों की हिंसा और मनुष्य का शोषण करने में भी वह नहीं हिचकता । विषैली गैस, दवाओं आदि के बड़े-बड़े कारखानों का जमाव इसके उदाहरण हैं । सौन्दर्य-प्रसाधनों के निर्माण में कितनी हिंसा होती है यह किसी से छिपा नहीं है । धन कमाने में जितनी क्रूरता व्याप्त है उतनी ही क्रूरता धन को खर्च करने में की जाती है। सौन्दर्य प्रसाधनों का सबसे अधिक उपयोग महिला समाज में होता है । यदि महिलाओं में जागरूकता हो जाये तो वे इस क्रूरता को रोक सकती हैं। इसके लिये महिलाओं को चाहिये कि वे हिंसक सौन्दर्य-प्रसाधनों के विरोध में एक जागृति पैदा करें। वे चाहें तो अपने परिवार के पुरुषों को भी ऐसे धन्धों में फँसने से रोक सकती हैं जो हिंसा व क्रूरता से भरे हुए हैं। जैन समाज को उन्हीं व्यवसायों के द्वारा धन कमाना चाहिये जो उनके धर्म और मान्यताओं का हनन करने वाला न हो । व्यवसाय क्रूरता को बचाने से जीवन में अहिंसा को उतारा जा सकता है । अहिंसा की प्रतिष्ठा से ही विश्वशान्ति सम्भव है । अतः अहिंसा का सम्बन्ध व्यवसाय एवं घरेलू जीवन से जोड़ना होगा । घरेलू जीवन में महिलाओं का साम्राज्य होता है । अतः नारियों को स्वयं अपने जीवन में अहिंसक होना होगा । इसके लिये आवश्यक है कि वे सर्वप्रथम घर-बाहर के प्रदर्शन में क्रूर साधनों का उपयोग न करें, न दूसरों को करने दें । हम सब परिचित हैं कि आज की प्रमुख समस्या दिखावटी प्रदर्शन है। चाहे वह सौन्दर्य का प्रदर्शन हो, चाहे शादी व्याह के अवसरों पर फालतू सजावट का प्रदर्शन हो अथवा हिंसक दवाइयों को खाकर अपनी बनावटी जवानी का प्रदर्शन हो। इस प्रदर्शन की आसक्ति ने ही मनुष्य को क्रूर बना दिया है । महिला समाज में प्रदर्शन के इस कैंसर ने पूरी मानव जाति को खोखला कर दिया है । सौन्दर्य प्रसाधनों में तो केवल प्राणियों की हिंसा ही की जाती है, किन्तु इस प्रदर्शन और सजावट की बीमारी ने तो कई नई नवेली दुल्हनों के प्राण ले लिये हैं । हिंसा की क्रूरता तो सामने दिखती है, किन्तु प्रदर्शन की क्रूरता हम महिलाओं के भीतर छिपी रहती है । एक तरफ हम छोटे से छोटे जीवों की हिंसा से बचने का दिखावा करती हैं और दूसरी ओर जब हमारी बहू सगाई अथवा शादी के दहेज में सौन्दर्य प्रसाधन से सजा हुआ थाल नहीं लाती तब ताने दे-देकर हम उसके मन की हत्या कर देती हैं। इसी तरह कपड़ों, गहनों और फर्नीचर आदि के प्रदर्शन में भी हम क्रूर से क्रूर व्यवहार करती हैं । अतः हमें एक ओर सौन्दर्य प्रसाधनों की द्रव्यहिंसा से बचना है तो दूसरी ओर प्रदर्शन की भाव- हिंसा से भी बचना होगा । तभी हम संसार में फैली क्रूरता को कम कर सकेंगे । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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