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खण्ड ५ : नारी - त्याग, तपस्या, सेवा की सुरसरि
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नहीं रहा । विधवाएँ रंगीन वस्त्र भी पहनने लगीं जो पहले वर्जित थे । महावीर की समकालीन थावच्चा सार्थवाही नामक स्त्री ने मृत पति का सारा धन ले लिया था जो उस समय प्रचलित नियमों के विरुद्ध था । "तत्थणं बारवईए थावच्चा नामं गाहावइणी परिवसई अड्ढा जाव।
महावीर के समय में सती प्रथा बहुत कम हो गई थी । जो छुटपुट घटनाएँ होती थीं वे जीव हिंसा के विरोधी महावीर के प्रयत्नों से समाप्त हो गईं। यह सत्य है कि सदियों पश्चात् वे फिर आरम्भ हो गयीं ।
बुद्ध के अनुसार स्त्री सम्यक् सम्बुद्ध नहीं हो सकती थी, किन्तु महावीर के अनुसार मातृजाति तीर्थंकर भी बन सकती थी । मल्ली ने स्त्री होते हुए भी तीर्थंकर की पदवी प्राप्त की 1
महावीर की नारी के प्रति उदार दृष्टि के कारण परिव्राजिका को पूर्ण सम्मान मिलने लगा । राज्य एवं समाज का सबसे पूज्य व्यक्ति भी अपना काम छोड़कर उन्हें नमन करता व सम्मान प्रदर्शित करता था । " नायधम्मकहा" आगम में कहा है :
तए णं से जियसत्तु चोक्खं परिव्वाइयं एज्जमाणं पासइ सीहासणाओ अब्भुट्ठेई सक्कारेई आसणेणं उवनिमन्तेई ।
इसी प्रकार बौद्ध - युग की अपेक्षा महावीर युग में भिक्ष ुणी संघ अधिक सुरक्षित था । महावीर भिक्षुणी संघ की रक्षा की ओर समाज की ध्यान आकर्षित किया ।
यह सामयिक व अत्यन्त महत्वपूर्ण होगा महावीर स्वामी के उन प्रवचनों का विशेष रूप से स्मरण किया जाये जो पच्चीस सदी पहले नारी को पुरुष के समकक्ष खड़ा करने के प्रयास में उनके मुख से उच्चरित हुए थे I
सज्जन वाणी :
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१. जो व्यक्ति धार्मिकता, और नैतिकता तथा मर्यादाओं का परित्याग कर देता है, वह मनुष्य कहलाने का अधिकार खो देता है ।
२. धर्म से ही व्यक्तिगत जीवन में अनुशासन, सामाजिक जीवन में समानता, सेवा और श्रद्धा का सुयोग मिलता है जिससे व्यावहारिक जीवन भी सुखमय बनता है ।
३. स्वभाव की नम्रता से जो प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, वह सत्ता और धन से नहीं मिल सकती न कोरी विद्वा से मिलती है ।
४. जिन्होंने मन, वचन काया से अहिंसा व्रत का आचरण किया है उनके आस-पास का वातावरण अत्यन्त पवित्र बन जाता है । और पशु भी अपना वैर भाव भूल जाते हैं ।
- पू० प्र० सज्जन श्री जी म०
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