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________________ खण्ड ४ : धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म-चिन्तन १०६ .. (२) अनाभोग निर्वतित-अबुद्धिपूर्वक होने वाला क्रोध । आचार्य मलयगिरि के अनुसार-जो मनुष्य किसी विशेष प्रयोजन के बिना, गुणदोष के विचार से शून्य होकर प्रकृति की परवशता से क्रोध करता है-वह अनाभोग निर्वतित है। (३) उपशान्त--जिस क्रोध के संस्कार तो हैं किन्तु उदय में नहीं है। (४) अनुपशान्त --क्रोध की अभिव्यक्ति । क्रोध की अभिव्यक्ति, क्रोध की उत्पत्ति अनेक कारणों से होती है। अपने प्रति अन्याय होने पर प्रतिरोध प्रकट करने के लिए, कार्यक्षमता के अभाव में कार्यसंलग्न होने पर, शारीरिक दुर्बलता, रोग आदि की अवस्था में, थकावट में कार्य करना पड़े, कार्य में कोई अनावश्यक बाधा डाले तो क्रोध आने लगता है । यह तो प्रकट कारण हैं । वस्तुतः जहाँ-जहाँ अपनी अनुकूलता, प्रियता में बाधा उपस्थित होती है, अपना मान खण्डित होने पर, माया प्रकट होने पर तथा लोभ सन्तुष्ट न होने पर क्रोधोत्पत्ति होती है । मान, माया, लोभ कषाय कारण हैं तथा क्रोध कार्य है। अपनी इच्छा का अनादर, अपेक्षा उपेक्षा में परिवर्तित होने पर, विचारों में संघर्ष होने पर क्रोध प्रकटीभूत होता है। स्थानांग सूत्र में क्रोधोत्पत्ति के दस कारणों का कथन किया गया है----इष्ट पदार्थों, इष्ट विचारों, इष्ट व्यक्तियों के संयोग में बाधा उपस्थित करने वाले के प्रति क्रोध का उद्भव होता है एवं अनिष्ट पदार्थों, अनिष्ट विचारों, अनिष्ट व्यक्तियों के संयोग में कारणभूत बनने वाले के प्रति भी क्रोध उभरता है। क्रोध की उत्पत्ति का कारण बताते हुए गीता में कहा है--विषयों का चिन्तन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति उत्पन्न हो जाती है, आसक्ति से उन विषयों की प्राप्ति की कामना उत्पन्न होती है, कामना से उनकी प्राप्ति में विघ्न उपस्थित होने पर क्रोध उत्पन्न होता है । अतः क्रोध की उत्पत्ति का मूल कारण विषयों के प्रति आसक्ति है। प्राचीनतम आगम आचारांग सूत्र में तो विषयों को ही संसार कहा है। क्रोध का प्रकाशन तीव्र रोष के रूप में भी हो सकता है और कभी सामान्य खीझ और चिढ़ के रूप में भी । यह कभी-कभी भय या दुःख की भावनाओं से मिश्रित ईर्ष्या में और कभी भय से मिश्रित धृणा की भावना में भी पाया जाता है । क्रोध की अभिव्यक्ति अनेक रूपों में होती है। सामान्यतया कभी-कभी मनुष्य अपने क्रोध को भी क्रोध नहीं समझ पाता है । मात्र तीव्र गुस्सा करना ही क्रोध नहीं है अपितु क्रोध की कई परिणतियाँ हैं जिसे भगवती सूत्र आदि में क्रोध का पर्यायवाची बताया है। क्रोध के पर्याय समवायांग सूत्र' एवं भगवती सूत्र में क्रोध के दस पर्यायवाची नामों का कथन किया गया है। जो निम्नलिखित हैं १. प्रज्ञापना, पद १४, मलयगिरि वृत्ति पत्र २६१ २. ठाणं, स्थान ४, उ० १, सू० ८८। ३. ठाणं, स्थान ४, उ० १, सू० ८८। ४. ठाणं, स्थान १०, सूत्र ७।। ५. गीता, अ० २, श्लोक ६२ । ६. आयारो, अ० १, उं० ५, सू०६३ । ७. कोहे कोवे रोसे दोसे अखमा संजलणे कलहे चंडिक्के भंडणे विवाए""समवाओ, समवाय ५२, सूत्र १ । ८. भगवती सूत्र, श० १२, उ० ५, सूत्र २। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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