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________________ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी श्री कल्याणमल जी सा. की जीवन रूपी ऊसर मनोभूमि भी धर्म की दृष्टि से उर्वर होने लगी। उपधान तप–वि. सं. १९९८ में चारित्रनिष्ठ पूज्य गुरुदेव मणिसागरजी म. सा. एवं बालमुनि श्री विनयसागरजी म. सा. जयपुर संघ की आग्रह भरी विनती को स्वीकार कर चातुर्मास हेतु जयपुर पधारे। धूमधाम से नगर-प्रवेश कराया गया । आपश्री के अमृतोपम जोशीले प्रथम प्रवचन ने धर्मध्यान की सुरसरि ही प्रवाहित कर दी, जनता बहुत प्रभावित हुई। यहाँ तक कि कभी प्रवचनों में न आने वाले सेठ सा. श्री कल्याणमलजी भी प्रतिदिन प्रवचनों में आने लगे। इतना आकर्षण था म. सा. श्री के प्रवचनों में । चातुर्मास के प्रारम्भ में ही धर्मनिष्ठ श्रावकों ने महाराज साहब से उपधान तप करवाने की प्रार्थना की । महाराज साहब ने स्वीकृति के देने के साथ ही श्रावकों से पूछ लिया-इस तप की आराधना के लिए आप लोगों ने कहाँ और कैसा स्थान चुना है ? श्रावकगण अभी स्थान के बारे में सोच ही रहे थे कि सेठ कल्याणमल जी सा. ने तुरन्त खड़े होकर विनम्रस्वर में कहा-भगवन ! उपधान तप का कार्यक्रम विधि-विधान आदि कटले में (जहाँ उनकी बहुत लम्बी-चौड़ी जगह थी और वहीं वे निवास भी करते थे-वर्तमान में इस जगह पर अग्रवाल कॉलेज है) हो तो बहुत सुन्दर रहे । मैं अपने को बहुत सौभाग्यशाली समझूगा। सेठ कल्याणमलजी के इन शब्दों को सुनकर सभी उपस्थित जन चकित रह गये-जो व्यक्ति कुछ दिन पहले तक धर्म के नाम से ही दूर भागता था, वह ऐसी प्रार्थना कर रहा है। खैर, संघ ने सहमति दी और महाराज साहब ने अनुमति दे दी। सेठ कल्याणमलजी हर्षित हो गये और उपधान के लिये तैयार भी। . घर पहुँचे और परिवारीजनों को यह सब बताया तो पहले तो किसी को विश्वास ही नहीं हआ और जब विश्वास हुआ तो सभी हर्षित हुए। सज्जनकुमारीजी के तो हर्ष का ठिकाना ही न रहा, अपने पति की इस बदली हुई प्रवृत्ति को देखकर। मनुष्य की प्रवृत्ति को बदलते देर नहीं लगती, चाहिए सिर्फ प्रेरक निमित्त । सेठ सुदर्शन का निमित्त पाकर हत्यारा अर्जुनमाली बदल गया और भगवान महावीर की संगति से मुक्त भी हो गया। वास्तविक स्थिति यह है कि मनुष्य में विल पावर (इच्छा शक्ति) प्रबल होनी चाहिए। यह शक्ति होती तो सबमें है, पर सुप्त, अर्धसुप्त दशा में पड़ी रहती है। जैसे ही कोई प्रबल निमित्त मिला कि यह शक्ति जागृत हो जाती है। पू. मणिसागरजी म. सा. के रूप में ऐसा ही प्रबल निमित्त सेठ कल्याणमलजी को मिला और उनकी प्रवृत्ति भी धर्माभिमुखी हो गई। - आसोज शुक्ला १० के मंगलमय शुभ दिवस में पू. गुरुदेव मणिसागरजी म. सा., बालमुनिश्री विनयसागरजी म. सा. तथा तत्रस्थ विराजित जाप परायण प्र. महोदया श्री ज्ञानश्री जी म. सा., मधुर गायिका पू. श्री उपयोगश्रीजी म. सा., जैन कोकिला पू. श्री विचक्षणश्रीजी म. सा. आदि की पाबन निश्रा में उपधान तप शुरू हो गया। सेठ कल्याणमलजी ने भी अपनी धर्मपत्नी श्री सज्जनकुमारीजी के साथ उपधान तप शुरू कर दिया। उपधान तप एक कठिन तपस्या है। इसमें ५१ दिन तक एक दिन उपवास और दूसरे दिन एकासना किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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