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________________ जर्मनी के जैन मनीषी : डॉ० पवन सुराणा १०-भविस्सदत्त कहा जैन कृतियों के सम्पादन एवं अनुवाद के अलावा जेकोबी ने कई अनुसन्धान पत्र जैन धर्म तथा दर्शन पर लिखे । अपने गुरु वेबर के साथ ही जेकोबी का नाम भी जैन साहित्य के अग्रणी विद्वानों में लिया जाता है । जेकोबी ने जैन साहित्य के अलावा गणित तथा विज्ञान आदि अन्य क्षेत्रों में भी अनुसंधान किया। प्राकृत ग्रन्थों के प्रकाशन ने उनको प्राकृत व्याकरण लिखने को भी प्रेरित किया। जेकोबी ने आनन्दवर्धन के ध्वन्यालोक का अनुवाद किया। अपने पेपर भारतीय तर्कशास्त्र में उन्होंने तार्किक ढंग से अनुमान के विचार को स्पष्ट किया । सामान्य पाठक के लिए उन्होंने “पूर्व का प्रकाश" (Light of Orient) नामक पुस्तक की रचना की। __ जेकोबी के सम्मान में उनकी ७५वीं वर्षगांठ पर किरफेल द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ में जेकोबी की सभी कृतियों तथा अनुसन्धान पत्रों का उल्लेख है। जेकोबी विदेशी विद्वानों में प्रथम विद्वान थे जिन्होंने प्रमाणित किया कि न केवल महावीर बल्कि पार्श्वनाथ भी ऐतिहासिक पुरुष थे तथा जैन धर्म, बौद्ध धर्म से विकसित धर्म न होकर अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखता है । जैन साहित्य पर किए अपने उल्लेखनीय अनुसन्धान के कारण जैन समाज ने उनको “जैन दर्शन दिवाकर" की उपाधि से विभूषित किया। पैसा आवश्यक है आवश्यक कार्यों की पूर्ति के लिए, न कि अनावश्यक रूप से पेटियों में संग्रह के लिए। पेट भरने योग्य पैसा हम न्याय से अजित कर सकते हैं। पेटियों को भरने के लिए तो हमें अन्याय करना ही होगा । न मालूम उस संगृहीत धन में कितने गरीबों की आहे व हाय-हाय लगी हुई होंगी। वह तो एक प्रकार से खून से सना धन है । उस धन से क्या कभी कल्याण होने वाला है ? आज खूब शिकायतें आती हैं कि हमारा मत; मन्दिर में नहीं लगता । हमारा मन सामायिक में नहीं लगता । हमारा मन ध्यान में नहीं लगता लगता क्यों नहीं ? इसका कारण कभी जानना चाहते हैं ? अगर जाना है तो उन कारणों को दूर करने का प्रयत्न करो । ख्याल रहे, "जैसा अन्न, वैसा मन" अन्न शुद्ध नहीं होगा तब तक मन कैसे शुद्ध होगा? मन की शुद्धि के लिए शुद्ध अन्न की नितान्त आवश्यकता है। पेट में अनाज तो अशुद्ध पहुँचे और हम सामायिक करना चाहें, पूजा करना चाहें तो कभी नहीं होगा। -आचार्य श्री जिनकान्तिसागर सूरि ('अमर भये, न मरेगे' पुस्तक से) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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