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________________ १० एक प्रसिद्ध पंडित द्वारा बताया गया जन्म कुण्डली का फलादेश शुभ सं० १९६५ वैक्रमीये वैशाख शुक्ला १४ शुक्रवासरे सूर्य स्पष्ट १-२ इष्ट घटी ५३/२३ समये मीन लग्ने विशाखा नक्षत्र तृ० चरणे जन्म | पूज्य प्रवर्तिनी सज्जनश्री जी महाराज की जन्म कुन्डली (10) १ बु शु. मं ३ रा. ४ बृ. m ५ शनि १२ w ११ केतु कारक है । Jain Education International जीवन ज्योति: साध्वी शशिप्रभाश्रीजी १० दीक्षा योग - गुरु शनि का त्रिकोण योग - त्यागवृत्ति वैचारिक शक्ति अर्थात् सोचने-समझने की विशेष शक्ति । बुध शुक्र स्थान परिवर्तन योग - तीव्रज्ञान, सौलीसीटर जैसा बुद्धिमान । सूर्य आत्मबल का प्रतिनिधि है उस पर शनि की पूर्ण दृष्टि होने से सर्वत्याग की भावना तथा सोचने समझने की बुद्धि होती है । दशमेश उच्च का है । उस पर शनि की त्रिकोण दृष्टि है तथा दशम भाव पर पूर्ण दृष्टि है यह योग भी वैराग्यकारक है । चन्द्रमा से दशम स्थान में उच्च राशि का गुरु है इससे उच्च श्र ेणी का आत्मिक कार्य करने वाला होता है । लेखन कला योग - तीसरा स्थान लग्न में स्थित शनि से दृष्ट है तथा उसमें 'बुध' बैठा है अतः वह लेखनकला में कुशल बनाता है । चन्द्र शासन सत्ता योग - चन्द्रमा लग्नेश को देखता है तथा तृतीयेश पर भी दृष्टि है। तृतीयेश मंगल गृह के साथ है तथा तीसरे चौथे स्थान के स्वामियों का परस्पर परिवर्तन योग है अतः शासन सत्ता योग बनता है । शनि गुरु की राशि में व गुरु की ही दृष्टि में होने से महान् तीव्र अध्यात्मज्ञान और कलाओं पर स्वामित्व प्राप्त कराता है। शासन सत्ता का भी महान् योग करता है । शिष्यादि का योग - गुरु शनि का त्रिकोण योग, व्ययेश पर गुरु की दृष्टि होने से शिष्यादि का योग तथा शास्त्रवेत्ता योग करता है । तृतीयेश का केन्द्र में और चतुर्थेश का पराक्रम में परिवर्तन योग होने से महान् धैर्य और समाधि योग होता है । आगम ज्ञान -- लाभेश पर गुरु की दृष्टि और लाभेश शनि तथा लग्नेश गुरु का त्रिकोण योग । सुखेश पर मोक्षेश की दृष्टि महान् उपदेशक व महान् ज्ञानी बनाती हैं तथा ब्रह्मचर्य मन का धैर्य महान् समाधिधारक दृढ़श्रद्धाशील तथा उद्यमी बनाती है । आत्मबल योग---मंगल धनेश और भाग्येश होकर केन्द्र में तृतीयेश के साथ बैठा है यह योग आत्मबली मनोभिष्ट कार्य सिद्ध करने वाला तथा महान् आत्मबली बनाता है । उच्चपद तथा दीर्घायु योग- शंख योग- लग्नेश और दशमेश त्रिकोण में दीर्घायु और उच्चपद For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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