SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन ज्योति: साध्वी शशिप्रभाश्रीजी (२) स्थानकवासी समाज द्वारा संचालित कन्या पाठशाला । इसका वर्तमान नाम सुबोध हायर सैन्डी स्कूल है । इसमें कन्याओं के शिक्षण की व्यवस्था है । यह प्रगति पथ पर है । ८ (३) वीर बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय व कॉलेज भी वर्तमान में है । इसका श्रीगणेश ५० वर्ष पहले पूज्या श्री स्वर्णश्री जी म. सा. की प्रवचन प्रेरणा से हुआ था । किन्तु जब चरितनायिका ५ वर्ष की थीं, उस समय ये स्कूल नहीं थे । तेरापंथ समाज की ओर से भी कोई स्कूल नहीं था । लेकिन तेरापंथ समाज में एक ऐसे स्कूल की आवश्यकता अवश्य अनुभव की जा रही थी जहाँ (पुत्री) कन्याओं को व्यावहारिक शिक्षण के साथ-साथ धार्मिक संस्कार भी मिलें । इस दृष्टिकोण से तेरापंथ समाज की ओर से एक पाठशाला स्थापित की गई, जिसकी स्थापना में श्री गुलाबचन्दजी लूनिया ( चरितनायिका के पिता) अग्रणी थे । इसी पाठशाला में चरितनायिका जी को प्रवेश कराया गया। इसके अतिरिक्त घर पर भी शिक्षण शुरू किया गया। पंडित मीठालालजी सा. हिन्दी, गणित तथा अन्य विषयों का ज्ञान प्रदान करते थे तो पंडित श्री मदनमोहन जी शास्त्री संस्कृत का शिक्षण देते थे । विद्यालय में भी ये ही पढ़ाते थे । छोटे-छोटे लड़के-लड़की साथ ही पढ़ते थे । हमारी चरितनायिका धार्मिक क्रिया, सामायिक प्रतिक्रमण आदि सीखने के लिए तत्रस्थ विराजित साधु-साध्वीजी म. तथा समीपस्थ धामिक पाठशाला में जाती थी । यह पाठशाला सेठ श्री फूलचन्द जी सा. द्वारा संचालित थी और यहाँ मेहताब जी यतिनी' तथा भंवरबाई ( अध्यापिका) धार्मिक तथा सामान्य ज्ञान देती थीं । यहाँ विशेषरूप से उच्चारण की शुद्धता और अर्थ के चिन्तन पर विशेष ध्यान दिया जाता था । ये दोनों गुण तो आप में प्रारम्भ से ही विकसित थे, साथ ही आपकी बुद्धि भी कुशाग्र थी, अतः थोड़े समय में आपने काफी ज्ञान उपार्जित कर लिया। आठ वर्ष की आयु तक तो आपने पच्चीस बोल, चर्चा के तेरह द्वार, बावन बोल, दण्डक हुन्डी, अनुकम्पा की ढालें आदि कई छोटे-बड़े थोकड़े कण्ठस्थ कर लिए थे । महान् आत्माओं के उद्गार - धार्मिक पाठशाला की सहपाठिनियों चाँदबाई, सरदारबाई, मिश्री - बाई, उमरावबाई आदि ( ये सब मन्दिरमार्गी थीं) के साथ एक बार आप इमलीवाले उपाश्रय में (यह वर्तमान में विचक्षण भवन के नाम से प्रसिद्ध है) जहाँ स्वनामधन्या पुण्यश्री जी म. अपने शिष्या समुदाय के साथ विराजते थे, उनके दर्शन - वन्दन हेतु गयीं। उनकी तेजस्वी, शांत मुखमुद्रा को देखकर आप बहुत प्रभावित हुईं। फिर तो आप नित्य ही जाने लगीं । इसी प्रकार एक बार जब आप ५ वर्ष की ही थीं, अपने पिताजी के साथ, जयपुर में ही विराजित खरतरगच्छीय परम आगमज्ञ योगिराज शिवजीरामजी म. के दर्शनार्थ गयीं । आपको देखकर योगिराज के मुख से उद्गार निकले - १. पुरुष यति के समान स्त्री यतिनी होती थीं। अब तो नामशेष हो चुकी हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy