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खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ
आपकी रचित जैसलमेर चैत्य परिपाटी एवं सवत् १७६७ में पाटण में रचित जैसलमेरी श्रावकों के प्रश्नों के उत्तरमय सिद्धान्तीय विचार ग्रन्थ प्राप्त हैं।
(२६) जिनभक्तिसूरि जिनसुखसूरि के पट्ट पर श्रीजिनभक्तिसूरि आसीन हुए । इनके पिता धष्ठि गोत्रीय हरिचन्द्र थे, जो इन्द्रपालसर नामक ग्राम के निवासी थे। इनकी माता थी हरसुखदेवी । संवत् १७७० ज्येष्ठ सुदी तृतीया को आपका जन्म हुआ था। जन्म नाम आपका भीमराज था। और, संवत् १७७६ माघ शुक्ला सप्तमी को दीक्षा ग्रहण के बाद आपका दीक्षा नाम भक्तिक्षेम रखा गया था। संवत् १७०० ज्येष्ठ बदी तृतीया के दिन रिणीपुर में श्रीसंघकृत महोत्सव करके गुरुदेव ने अपने हाथ से इन्हें पट्ट पर बैठाया था। तदनन्तर आपने अनेक देशों में विचरण किया।
संवत् १८०४ ज्येष्ठ सुदी चौथ को माण्डवी बन्दर में आपका स्वर्गवास हुआ । जिस स्थान पर आपका दाह संस्कार किया गया था उस अग्नि-संस्कार की भूमि में उस रात्रि को देवों ने दीपमाला की । संवत् १८५२ में जैसलमेर स्थित अमृत धर्मशाला में वाचक क्षमाकल्याणजी ने आपके चरण स्थापित किये।
३०. जिनलाभसूरि आचार्य जिनभक्ति सूरि के पश्चात् उनके पट्ट पर जिनलाभसूरि आरूढ़ हुए। ये बीकानेर निवासी बोहिथरा गोत्रीय साह पंचायन दास के पुत्र थे, पद्मादेवी इनकी माता थी। आपका जन्म संवत् १७८४ श्रावण सुदी पंचम को बापेऊ ग्राम में हुआ था। जन्म नाम लाल चन्द्र था। इन्होंने संवत् १७६६ ज्येष्ठ सुदी छठ को जैसलमेर में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा नाम लक्ष्मीलाभ रखा गया । जिनभक्तिसरि के स्वर्गवास के पश्चात् संवत् १८०४ ज्येष्ठ सुदी पंचम को माण्डवी बंदर में आपकी पद स्थापना हुई। इस अवसर पर आपका नाम जिनलाभसूरि रखा गया। पद स्थापना महोत्सव छाजहड गोत्रीय साह भोजराज ने किया।
इस प्रकार परम सौजन्य, सौभाग्यशाली, महाउपकारी, अनेक सद्गुणों से सुशोभित, पादविहारी, जिनलाभसूरि ने संवत् १८३४ आश्विन बदी दशमी के दिन बूढ़ानगर में देवगति प्राप्त की। आपकी रचनाओं में आत्मप्रबोध प्रकाशित है तथा दो चौबीसियाँ व स्तवन आदि प्राप्त हैं । आपके शासनकाल में कई प्रमुख विद्वान थे । इनमें से महोपाध्याय रामविजय (रूपचन्द्र गणि) शिवचन्द्रोपाध्याय, महोपाध्याय क्षमाकल्याण आदि प्रमुख हैं।
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