SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड २ श्रद्धार्चन काव्याञ्जलियाँ मुक्तक । साध्वी सम्यक्दर्शनाश्री जी नीला-नीला कितना सुन्दर लगता है आकाश । छाँव तले उनकी हर मन का मिट जाता संत्रास ॥ गुरुवर्या श्री सज्जनश्रीजी महाराज का भी ऐसाव्यक्तित्व अनूठा जनमानस को देता दिव्य प्रकाश ।। चेहरा गुरुवर्या का प्रतिपल मुस्काता रहता है । मौन में भी उनके अमृत का झरना बहता है ।। परम पावनी गुरुवर्याश्री की है शीतल छायाभव भव मुझे मिले मेरा मन हरदम ये कहता है ।। नाम अनुपम रूप अनुपम, अनुपम सारा जीवन । ज्ञान अनुपम ध्यान अनुपम जन्मभूमि का कण-कण ।। पूज्य गुरुवर्याश्री की मैं क्या गुण गरिमा गाऊँतुझसे ही यह बगिया सारी महक रही ज्यों चंदन ॥ दिव्य तेज बिखराता मणि-सा रहता चेहरा तेरा। प्रतिपल पान करू अमृत का मन यह कहता मेरा ।। तेरे चरणों में गुरुवर्या यही प्रार्थना मेरीकरुणामृत बरसाकर मेटो जन्म मरण का फेरा ।। श्री शशि प्रिय चरणों में मैंने मन की शान्ति पाई। तुमको ही अर्पण करने मैं भाव सुमन भर लाई । युग-युग अमर रहें गुरुवर्या मन की यही पुकारसम्यक्दर्शना ने धर श्रद्धा ये प्रार्थना गाई ॥ ( ६२ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy