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________________ हे ! सज्जन श्रीजी महाराज पराक्रमसिंह चौधरी कोठियाँ (भीलवाड़ा) जन जन के मन में ज्ञान ज्योति का तुमने दीप जलाया । सत्य अहिंसा दया धर्म का निश दिन तुमने नीर पिलाया । मेरे मन में जो भी हैं वे सारे विकार आप हरो । हे सज्जन श्रीजी महाराज मुझ पर यह उपकार करो । नगर गुलाबी जयपुर में तुमने जन्म लिया था, गलाबचन्द मेहताब देवी का जीवन धन्य किया था, गोलेछा कल्याणमलजी पति बन कर के आये, पर मोक्ष मार्ग के बढ़ते पाँव रोक नहीं पाये, मन बोला सुख पाना है तो दीक्षा ग्रहण करो । हे ! सज्जनश्रीजी महाराज मुझ पर यह उपकार करो । आप विदुषी आगम ज्योति बनकर जग में आई, जिन शासन में प्रवर्तिनी की पावन पदवी पाई सेवाभावी निरभिमानी तुम स्वल्प मधुर भाषी हो, शान्त प्रकृति, स्वाध्यायी सदा मोक्ष अभिलाषी हो, पापी से नहीं सदा पाप, तुम कहती मत घृणा करो । सज्जन श्रीजी महाराज मुझ पर यह उपकार करो । प्राकृत दर्शन न्याय व्याकरण इनको तुमने जाना, काव्य कोष जैनागम को पढ़कर के पहचाना, Jain Education International प्रतिभा से सम्पन्न आप थी बनी मधुर व्याख्यानी, 'पुण्य जीवन ज्योति' लिखकर कहलाई महा ज्ञानी, पथ भ्रमित हो रही मानवता इसमें ज्ञान भरो । हे ! सज्जन श्रीजी महाराज मुझ पर यह उपकार करो । तपोनिष्ठ सेवा भावी बनकर लोक सुधारा, महावीर की शिक्षा से तुमने परलोक संवारा, अभिनन्दन की बेला में मन मेरा नित नाचे, महावीर बन कर आगम ज्योति मेरे मन में राचे, अपनी ज्ञान ज्योति को मेरे मन में आज भरो । हे ! सज्जनश्रीजी महाराज मुझ पर यह उपकार करो । ( ५६ For Private & Personal Use Only U www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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