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________________ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभ कामनाएँ उजागर करने का शुभ संकल्प किया है। इसके साथ 0 मुनिश्री रूपचन्द जी महाराज ही पत्राचार के माध्यम से उत्साही एवं श्रमनिष्ठ (दिल्ली) आर्या शशिप्रभाश्री जी एवं विदुषी आर्या सम्यग्- प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री जी म. सा. के अभिदर्शनाश्री जी की सराहना किये बगैर नहीं रह नन्दन का समाचार जानकर अतीव प्रसन्नता हुई। सकता-जिन्होंने श्वेताम्बर जैन खरतरगच्छ की साध्वीश्री जी से मेरा निकट परिचय राजगिरी तपःपूत साध्वीरत्न के जीवन कार्यों से समग्र जैन पावापुरी चातुर्मास में हुआ। समाज को सुपरिचित कराने के लिए अभिनंदन ग्रन्थ प्रकाशित करवाकर एक समारोह में उसका हम मुनिगण श्वेताम्बर कोठी, राजगिरी में लोकार्पण कराने का महान् संकल्प किया है। ठहरे हुए थे । चातुर्मास का प्रारम्भ हुआ नहीं था। साध्वीश्री का राजगिरी आगमन हुआ। वे हमारे उक्त अभिनंदन ग्रन्थ का प्रकाशन निश्चय ही स्थान पर पधारी । वरिष्ठ साध्वी को सामने देखएक सच्चा सन्त सम्मान साबित होगा। साध्वी कर वार्तालाप के लिए मैंने अपना आसन जमीन रत्न की निर्मल असांप्रदायिक व्यापक दृष्टि का पर बिछाने के लिए कहा। तभी साध्वीश्री ने कहायह ग्रन्थ परिचायक भी सिद्ध होगा। जैनदर्शन से यह कैसे हो सकता है ? आपको पट्ट पर ही विरासम्बन्धित निबन्धों का संयोजन भी इसमें किया जना होगा। मैंने बहत कहा-आप वरिष्ठ हैं, आगगया है । उसमें विविध विद्वानों के लेखों का एक मज्ञा हैं, आपका सम्मान चारित्र और श्रु त का जगह उपलब्ध होना भी विशिष्ट महत्वपूर्ण कार्य सम्मान है। किन्त साध्वीश्री ने मेरी एक भी नहीं है। इससे अभिनंदन ग्रन्थ व्यक्तिपरक न रहकर सुनी । तुरन्त अपना आसन बिछाकर वे सामने समष्टिपरक होगा। विराज गईं। आपकी अकृत्रिम नम्रता के प्रति मैं मन ही मन नत-मस्तक था । एक बार पुनः साध्वी शशिप्रभाश्री के इस महनीय कार्य की मैं मनतः अभिवृद्धि और प्रभावी भगवान महावीर के पच्चीसवें निर्वाण समारोह होने की शुभकामना करता हूँ। में आपको सदा प्रचारलिप्सा में दूर मौन भाव से शासन की सेवा में रत पाया । एक विनय-शीलसम्पन्न, सहज-शान्त तथा मौन सेवारत साध्वीश्री का सम्मान पूरे साध्वी समाज का सम्मान है । श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ इसके लिए बधाई का पात्र है। ॐ मुनिश्री कैलाशसागर जी म० 0 श्री कुशलमुनिजी महाराज विदुषी साध्वीरत्न श्री सज्जनश्री जी का रत्नों की गुलाबी नगरी जयपुर में जन्म प्राप्त अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है, जानकर प्रस- कर भौतिक रत्नों में न लुभाते हुए, आपने आध्यात्रता हुई। त्मिक पंच रत्न अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं परिग्रह को अपनी पारखी नजरों से परखकर अपने साध्वीश्री का स्वास्थ्य स्वस्थ रह। दाघायु बन जातो शासन सेवा करें, गुरुदेव से प्रार्थना व शुभाशीर्वाद दीक्षा ग्रहण करके, इस अमूल्य मानव-जीवन के - महत्व को समझकर, साधना के मार्ग पर चलकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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