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________________ १७८ खण्ड १ | जीवन ज्योति : व्यक्तित्व दर्शन जाती है पर आप इसकी अपवाद हैं। आपके शान्त स्वभाव का तो क्या वर्णन करू वह तो अवर्णनीय है । आपश्री की गुरु बहिनें फरमाया करती थीं कि 'सज्जन श्रीजी वास्तव में सज्जन ही हैं।' तप, त्याग व संयम निष्ठता के लिए आपश्री हमें सदा प्रेरित करती रहती हैं। चूँकि तप, संयम की रमणता में ही श्रमणत्व निहित है । मुझे तो जन्मदातृ माँ से भी अधिक आपश्री का असीम वात्सल्य सम्प्राप्त हुआ है। चूँकि मात्र १० वर्ष की अल्पायु में ही मुझे आपश्री के चरणों के सन्निकट रहने का सौभाग्य प्राप्त हो गया था । तब मैं सर्वथा मिट्टी के लौंदे के समान थी । कुम्भकारसम पूज्याश्री ने वर्तमान में मुझे कुम्भ का रूप प्रदान कर महान् उपकार किया है जिससे न केवल इस भव में अपितु भवभव में भी मैं उस उपकार से उऋण नहीं हो सकती । उपसंहार - वस्तुतः पूज्या प्रवर्तिनी महोदया श्रद्ध ेया, गुरुवर्याश्री का जीवन त्याग, तप, शील, संयम, उदारता, सरलता, नम्रता, शिष्टता आदि अनेक गुणों से ओतप्रोत है । आपश्री में शास्त्रोक्त, वे सभी गुण विद्यमान हैं जो साधक-जीवन के लिए अनिवार्य माने जाते हैं । अतः आत्मविकास की सर्वोच्च श्रेणी पर जहाँ आपकी निर्मल साधना से रत्नत्रय की आराधना पूर्णतः शुद्ध बने इसी शुभ भावना से आरूढ़ होने हेतु निरन्तर प्रयत्नशील हैं । ऐसे महान् व्यक्तित्व की धनी श्रद्धया पूज्याश्री के लिए जितना लिखा जाये, अल्प है । किन्तु मन्दमति मुझ अल्पज्ञा में इतनी शक्ति कहाँ है जो आपके उन सर्वोच्च सम्पूर्ण गुणों को इस जड़ लेखनी से आबद्ध कर सकूँ । ये तो श्रेष्ठ पुष्प नहीं, मात्र उनकी अल्प पंखुड़ियों को संग्रहीत करने का असफल प्रयास किया है जिसे पढ़कर पाठक उपर्युक्त आपश्री के उदात्त गुणों को स्व में लाने का यथा साध्य प्रयास करेंगे । इन्हीं शुभभावनाओं के साथ Jain Education International 'अद्भुत तुम्हारी साधना, अनुपम तुम्हारा ज्ञान । नामानुरूप गुणधारिका, हो कोटि-कोटि प्रणाम । खरतरगच्छ की शान हो, खरतरगच्छ की प्राण । सज्जन गुरुवर्या विश्व में, अमर आपका नाम ।' फ्र For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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