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- श्री भगवती ब्याख्या प्रज्ञप्ति स्तुति -
રિડી સ્ત્રીવિચિત जय जम । विश्लोद्धारिणि । भगवति जय हे जयव्ययप्रप्ति ।। परिसतिसारस्वत स्तोत्रम् नन्दतु नन्दन हे श्रुत सरिने । सत्त्वबोध अभिव्यक्ति : ॥ स्थायी
(गईल विक्रीतिवृतम्)
व्यासानन्तलोकनिकरैरासमस्ता स्थिरा, श्रुतहान रत्नाकर जय हे! भणधर सुगुरु प्रशीत ।। या सध्या गुरुनिर्गुरोरपि गुरूदेव स्तु या वन्यते । स्याबाद माझ्भय मान मरोवर : न्यायशास्त्र नवत! ९" | देवानामपिदेवा वितरता वाग्देवता देवता,
स्वान्त:हिप यतः स्तवमुलं यस्याःसमन्नोवरः। प्रश्नोत्तर वररत्नमालिके { शालिके अद्भुत ज्ञान: ।
वहीश्री प्रथा प्रतिमहिमा सन्तचिहिया, अनेकान्त प्रज्वल प्रतिभे। जय ! प्रपोज्ञानविज्ञान ॥ २॥ | मैं, मध्यहिता जगत्रयहितासर्वज्ञायाहिता। विवि भकि। गम प्रमितिनीतिमयि आगमललितललाम !
| श्रीजीलीचरमा गुणनुपरमा जायेतयस्मारमा,
विद्यैवावहिनीपति करीबी स्तुवेतामहम विश्ववन्यविभुवीरवदननिःसृत निझर अभिराम। ॥ २॥
कणे वरकभूिमिततनुः कर्णेशकबरी, आत्मानन्द निधायिनि दायिनि । सदैव ज्ञानोपयोग । हीस्वाहातपदा समस्त विपांवेली पदंसम्पदाम् । __ अन्य व्यक्ति तव प्रसाद करने, रलत्रय अभेग ॥५॥
संसावितरिणी विजयने विद्यावदाने सुने।
यस्याःसा पदवी सदाशिवपुरे देवावतमी कृता ॥३॥ सुपुण्ययि सुवर्णशलिोन दिल्यप्रभावनि। मात । सर्वाधारविचारिणी प्रतरिका निवाला, 'सज्जन' मन अति पावन कारिण। करती हम प्रतिपात ४५ जीएणनेणुवरक्का निभाःखादि वितावित
सा बाएी प्रam Rगुणगा न्याय प्रवीmsमल, पूज्य प्रवर्तिनी सज्जनश्री जी महाराज की सुन्दर शास्त्रीय लिपि के सुन्दर चित्र | अयस्तरलारणी निपुणा जैत्री पुनानुgan ये स्वच्छ, सुघड़ हस्ताक्षर चरित्रगत उदात्त गुणों को स्वतः व्यजित करते हैं।
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सुन्दर हस्ताक्षर का पत्र, प्रकट करता समग्र चरित्र