SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीर शासन सेविका साध्वी शशिप्रभा श्री को धन्यवाद देना उनके परिश्रम और कार्य सम्पादन की महत्ता को घटाना ही होगा क्योंकि जितना कुछ इन्होंने परिश्रम किया है उसका आभार शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता ? आप तो इस ग्रन्थ प्रकाशन की प्रारम्भ से ही प्रेरणा स्रोत रही हैं । सम्पूर्ण सम्पादक मण्डल की केन्द्र बनकर आपने ग्रन्थ सम्पादन में अत्यन्त ही सराहनीय कार्य किया है। भाई श्रीचन्द जी सुराणा 'सरस' ने ग्रन्थ के सम्पादन एवं मुद्रण भार को स्वीकार कर मुझे एक गुरुतर उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया । ऐसे व्यक्ति विरले ही होते हैं जो मुद्रक भी हों, सम्पादक भी हों कला मर्मज्ञ भी, प्रकाण्ड विद्वान भी हों तथा साथ ही समर्पित धार्मिक श्रावक भी हों। आपके अथक परिश्रम ने ही जीवन दर्शन शुभकामना, चिंतन, शोध, प्रशस्ति, इतिहास आदि विभिन्न पुष्पों को एक सूत्र में पिरोकर एक सुन्दर सी माला बनाई है जो अब आपके हाथ में है। तेरापन्थ संघ प्रमुख आचार्य तुलसी का हम कोटिशः वन्दन करते हुए अन्तःकरण से आभारी हैं जिन्होंने हमारे अवचेतन मस्तिष्क की अमूर्त कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए निरन्तर प्रेरित किया और इस कार्य के साफल्यमंडित होने का महान् आशीर्वाद प्रदान किया । . जैन धर्म, महावीर वाणी और प्रवर्तिनी सज्जनश्रीजी म. सा. का सन्देश दिग् दिगंत में फैले यही मेरी उत्कट अभिलाषा है । पुखराज लुनिया एवं समस्त परिवार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy