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________________ १०८ खण्ड १ | जीवन ज्योति पूज्य वर्ग था। संघ में सारे ३० हजार व्यक्ति थे । इस संघ की रक्षा के कोटा, बूंदी, टोंक, जैसलमेर व इन्दौर राज्यों ने स्वयं के व्यय से जिनमें १५०० अश्वारोही, ४००० पैदल, ४ तोपें, हाथी, नगारे, निशान, छड़ीदार, चोपदार आदि थे । लिए अँग्रेज सरकार, उदयपुर, अपनी-अपनी सेनायें भेजी थीं, . यह संघ मार्ग में आने वाले जैन मन्दिरों, दादाबाड़ियों एवं धर्मशालाओं का जीर्णोद्धार कराता हुआ स्वधर्मीवात्सल्य प्रभावना आदि करता हुआ क्रमशः तीन मास में श्री सिद्धाचलजी पहुँचा था । इसके उपलक्ष में ओसवाल समाज ने आपको संघवीपद पर अधिष्ठित किया । जैसलमेर महारावल ने लोद्रवा ग्राम जागीर में प्रदान किया । इस संघ में २० लाख रुपयों का सद्व्यय करके महान पुण्य और अमर कीर्ति प्राप्ति की । आपने कितने ही मन्दिरों और दादाबाड़ियों का निर्माण भी कराया जो आज भी आपकी पुण्य गाथा का मूक गौरवगान कर रहे हैं । इन्हीं के प्रपौत्र स्वनाम धन्य श्री केशरीसिंह जी साहब थे । रतलाम एवं कोटा दोनों ही स्थानों पर आपका अधिकार था। सेठ चांदमल जी साहब बाफना ने निःसन्तान होने के कारण आपको ही अपना उत्तराधिकारी बना दिया था । रतलाम के उद्यापन महोत्सव का वर्णन पुण्य जीवन में कर दिया है । सेठ केशरीसिंहजी साहब को रतलाम नरेश की ओर से राज्यभूषण, इण्डिया गवर्नमेंट की ओर से सन् १९१२ में राय साहब, सन् १९१६ में रायबहादुर तथा सन् १९२५ में दीवान बहादुर की सम्मानीय उपाधियाँ प्राप्त हुई थीं । ये बड़े ही धर्मनिष्ठ, भद्र प्रकृति, निरभिमानी, दानवीर और उदार महानुभाव थे । इतनी सम्पत्ति के स्वामी और कई उपाधियों से विभूषित होने पर भी आप में अभिमान का अंश भी न था । आप बड़े ही विनम्र स्वभाव वाले दयालु व्यक्ति थे । इनके तीन पुत्र हैं - श्री बुद्धिसिंह जी बाफना कोटे में रहते हैं । जैसलमेर तीर्थ के ट्रस्टी हैं । धर्मप्राण सुशिक्षित विनम्र स्वभाव के हैं। श्री पवित्रकुमार सिंह जी व अशोक कुमार सिंह जी दिल्ली में रहते हैं । दोनों ही व्यापार व्यवहारकुशल धर्मनिष्ठ हैं । धार्मिक कार्यों में अग्रणी रहते हैं । सेठानी श्रीमती गुलाब सुन्दरी बाफना धर्मप्राण, देवगुरु की परम भक्त आदर्श श्राविका रत्न है । लाखों रुपयों का धार्मिक कार्यों में सद्व्यय करती हैं । पूज्या श्री सज्जन श्रीजी म.सा. को दीक्षा दिलवाने में आपका पूर्ण सहयोग रहा है । यद्यपि सेठ सा. श्रीमान् कल्याणमलजी सा० सज्जनकुंवरबाई को उनके आग्रह के अनुसार दीक्षा की आज्ञा दे चुके थे तथापि उनके अनेक आग्रह थे । यथा-अमुक के पास अमुक जगह तथा अमुक समय में ही दूँगा, आदि-आदि। उस समय सेठ श्रीमान् केशरीसिंहजी सा. एवं सेठानी सा० श्री गुलाबसुन्दरीजी बाफना ने कल्याणमल जी सा० को स्पष्ट कह दिया कि तुम्हारा काम तो मात्र आज्ञा देने का था सो दे दी । अब शेष बातों के लिए सोचने की जिम्मेदारी आपको नहीं देनी है । उसके लिए हम लोग काफी हैं । इसके पश्चात् कल्याणमल जी सा. कुछ बोल न सके, चूंकि उन्होंने सेठ सा. व सेठानी सा. को सदा से ही माता-पिता के समान सन्मान दिया है । इस प्रकार श्रीमान् एवं श्रीमती बाफना जी के पूर्ण सहयोग से श्री सज्जनबाई की दीक्षा सानन्द सम्पन्न हुई । सर्वप्रथम मूर्तिपूजक धर्म की सम्प्राप्ति भी आपको (श्री सज्जनकंवर बाई को ) यहीं से अर्थात् बाफना परिवार से ही सम्प्राप्त हुई ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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