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________________ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी के साथ २० मई ८३ को मनाना निश्चित किया जा चुका था । इसी शुभ अवसर पर पू० श्रीचम्पाश्री जी म० सा० का शतायु अभिनन्दन तथा ६ कुमारी बालिकाओं का दीक्षा समारोह भी था। इन्हीं बालिकाओं में से २ बालिका (कुमारी नीता ललवानी व निशा छाजेड़) पिछड़े डेढ़-दो साल से पूज्या गुरुवर्याश्री की निश्रा में रहकर धार्मिक अध्ययन कर रही थीं, उनके परिवारीजनों ने भी गुरुवर्या के पास दीक्षा दिलाने की अनुमति प्रदान कर दी थी। वैरागिनों के परिवारीजनों तथा सिवाणा संघ की इच्छानुसार खरतरगच्छ के सभी साधुसाध्वियों को इस शुभ अवसर पर सम्मिलित होने के आमंत्रित किया गया । हम भी आमन्त्रित थे। प्रथम फाल्गुन शुक्ला में हमने फलोदी से विहार किया और क्षेत्रावा के प्राचीन मन्दिर के दर्शन करके शेरगढ़ पहुँचे। वहाँ जैनों के ६० घर हैं तथा बाजार में बीचोंबीच शिखरबद्ध मन्दिर है । दो दिन रुकने का विचार था पर अधिक दिन रुकना पड़ा। मन्दिर के परिसर में बनी धर्मशाला में प्रतिदिन व्याख्यान होते, रात्रि को कहानियाँ कहने का प्रारम्भ हो गया । बड़ी संख्या में जैन-अजैनों की उपस्थिति होती । लोगों की रुचि देखकर सामूहिक आयंबिल, शंखेश्वरजी के तेले व सामूहिक एकासने आदि कर लिये । लोगों का उत्साह बराबर बढ़ने लगा। होली का पर्व निकट था। लोगों का आग्रह मानकर वहीं रुक गये और होली के बाद ही विहार करने का निश्चय किया। गुरुवर्याजी के प्रवचनों से लोग बहुत प्रभावित हुए। कई अजैनों ने अभक्ष्यभक्षण का त्याग कर दिया। एक मोची परिवार ने तो परम्परा से चली आ रही हिंसावृत्ति का सर्वथा त्याग कर दिया। उसी परिवार की सदस्या मोहिनीबाई ने तो पूर्णतः जैनधर्म स्वीकार कर लिया। उसने पूर्णतः जमीकन्द त्याग दिया। प्रतिदिन नवकारसी करना, नवकार मंत्र की माला फेरना, चातुर्मास में चौविहार करना, पर्वतिथि को उपवास-पौषध करना-उसका नियम बन गया। इसके इस आचरण से सभी प्रभावित हुए। होली के पश्चात् विहार किया। विहार में शेरगढ़ के कई व्यक्ति साथ थे। मार्गस्थ छोटे-छोटे ग्रामों में धर्म-जागरणा करते हुए हम सब पचपदरा पहुँचे। वहाँ के लोगों के अत्यधिक आग्रह से शाश्वत ओली पर्व की वहीं आराधना की । तत्पश्चात् सिवाणा की ओर विहार किया। ४-५ दिन मे सिवाणा पहुँच गये। वहां लोग बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे । प्रवेश में काफी लोग साथ थे । श्रद्धय आचार्य श्री कांतिसागरजी म. सा. वहाँ पहले ही पधार गये थे। सभी की निश्रा में वैराग्यवती बहनों का डोरा बन्धन हुआ। अंजनशलाका प्रतिष्ठा निमित्त प्रभु का पंच कल्याणक महोत्सव बड़े धूमधाम से चल रहा था। सभी उत्साहित थे । वैराग्यवती बहिनों का जुलूस और वर्षीदान देखकर तो लोग अत्यधिक प्रभावित कुमारी नीता-निशा की दीक्षा : सं० २०४० वैराग्यवती बहनों की दीक्षा वैशाख शुक्ला ६ (१८ मई १९८३) को पू० आचार्य प्रवर उदयसागरजी मसा०, आचार्य प्रवर कांतिसागरजी म. सा. आदि मुनिवृन्दों एवं समुदायाध्यक्षा श्रीचम्पाश्रीजी म. सा., पू० प्रवर्तिनी सज्जनश्रीजी म.सा. आदि की निश्रा में धूम-धाम से सानन्द सम्पन्न हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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