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________________ खण्ड १ | जीवन ज्योति मास के लिए दर्शनों का वियोग हो रहा था। अतः भक्ति एवं दर्शन के सुख के साथ वियोग का दुःख भी मिश्रित हो रहा था। सभी ने बड़ी भक्ति से दर्शन किये । गुरुवर्याश्री के साथ दादा के दरबार में आये । पुनः चैत्यवन्दनादि कर पू. श्री शशिप्रभाजी म. सा , मैंने (प्रियदर्शनाजी) और तत्वदर्शनाश्रीजी ने मासक्षमण की भावना से अट्ठम (तेले) के प्रत्याख्यान कर लिये और दादा से चार महीने के लिए विदाई ली। हमारे नेत्र अश्र पूर्ण थे। वर्षा ने भी हमारे दुख को समझा और चौधारा आँसू (जलधारा) बरसा कर सहयोग/समवेदना प्रगट की। कपूर निवास से कल्याणभवन पहुंचे क्योंकि चातुर्मास वहीं करना था। पालीताणा चातुर्मास : सं० २०३३ अनुयोगाचार्यजी के आदेश से गुरुवर्याश्री ही व्याख्यान फरमाती थीं। मध्याह्न में अंजना चरित्र सुनाती थीं। हम तीनों का मासक्षमण के साथ मौन-जप-ध्यान चल रहा था। पूर्णाहति पर बालमुनि मणिप्रभसागरजी ने भी अठाई तप की आराधना की। चातुर्मासार्थ आये हुए श्रावक-श्राविकाओं ने पचरंगी तप भी किया। अष्टाह्निका महोत्सव, पूजा-वरघोड़ा, रात्रिभक्ति आदि सभी कार्यक्रम हरिविहार में थे, इसलिये हम सब लोग भी वहीं आ गये थे। प्रसिद्ध गुडाबालोतान की मंडली बुलाई गई थी, जिससे पूजा, वरघोड़े आदि में चार चाँद लग गये थे। वरघोड़े की शोभा दर्शनीय और स्वामीवात्सल्य प्रशंसनीय रहा । सभी कार्य सुव्यवस्थित ढंग से सम्पन्न हुए। चातुर्मास सभी प्रकार से सफल रहा। पठन-पाठन का कार्य भी सुन्दर रहा और फतेचन्दभाई की सेवा प्रशंसनीय रही। हमें गुजरात की पंचतीर्थी की यात्रा करनी थी अतः चातुर्मास बाद विहार किया। मौन एका. दशी की आराधना गिरनार तीर्थ पर की। वहाँ से विहार कर मार्गस्थ मांगरोल, वेरावल, आदि तीर्थों की यात्रा करते हुए चन्द्रप्रभासपाटन (सोमनाथ पाटन) पहुँचे। यहाँ चन्द्रप्रभ भगवान के विशाल मन्दिर के दर्शन करके मन प्रसन्न हो गया । यहीं इतिहास विख्यात सोमनाथ का मन्दिर समुद्र किनारे बना हुआ है, जिसको महमूद गजनवी ने बार-बार लूटा और ध्वस्त किया तथा इसका बार-बार निर्माण होता रहा। इसे सरकार ने ऐसा भव्य रूप प्रदान किया कि टूरिस्ट लोग भी देखने आते हैं। यहाँ से सन सेट पाइन्ट भी बड़ा सुन्दर दिखाई देता है। - यहाँ से विहार करके अजार। पार्श्वनाथ आये। लाल पत्थर की भगवान पार्श्वनाथ की बड़ी विशाल प्रतिमा है। भोजनशाला आदि भी व्यवस्थित है। __ वहाँ से महुआ दाठा तलाजा आदि पंचतीर्थी की यात्रा करके शत्रुजयी डेम के पास नूतन मन्दिर के दर्शन करते हुए पालीताना आये । चूंकि तीर्थराज का प्रभाव ही ऐसा है कि बार-बार यात्रा करने को मन करता है। एक बार पुनः तीर्थाधिराज के दर्शन किये । इसी बीच सूरत से श्री संघ का विनती पत्र एवं तत्रस्थ विराजित पू. श्री गणाधीश महोदय का आदेश पू. श्री अनुयोगाचार्यजी के पास आया कि 'मेरा स्वास्थ्य अनुकूल नहीं रहता, अतः चातुर्मास हेतु किसी साध्वीजी को भेजें। पूज्य गुरुदेव ने पूज्या गुरुवर्याश्री से कहा और उन्होंने मुझे (प्रियदर्शनाजी), तत्वदर्शनाजी तथा सम्यग्दर्शनाजी को सूरत विहार करवाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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