SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशक के बोल भारतीय धर्म परम्परा में जैनधर्म ही एक ऐसा धर्म है, एक ऐसी उदात्त परम्परा है, जिसमें साधना-उपासना के क्षेत्र में, स्त्री-पुरुष का समान महत्व हैं, समान ही अधिकार है । और समान गरिमा प्राप्त है । यहाँ सिर्फ मधुर प्रिय और उदार शब्दों के पुष्प अर्पित कर नारी की पूजा ही नहीं की गई है, बल्कि प्रत्येक क्षेत्र में आत्मविश्वास के सर्वोच्च स्वरूप में उसकी समान स्थिति को स्वीकार कर उसका समान महत्व प्रतिष्ठित किया गया है। आज तक के जैन इतिहास को उठाकर देखने से यह बात दिन के उजाले की तरह उद्भासित है कि इस पवित्र परम्परा में आदिकाल से जगन्माता भगवती मरुदेवा, ब्राह्मीसुन्दरी, तीर्थंकर भगवती मल्ली, महासती सीता, अञ्जना साध्वी तीर्थ प्रमुखा चन्दनबाला आदि की एक ऐसी अखण्ड उज्ज्वल परम्परा रही है, जो गंगा की तरह पवित्र है ही, इस धर्मंधरा को सदा अभिसिंचित और संबंधित भी करती रही है । इसी पुण्य परम्परा के पावन सम्पोष से भारतीय धर्म, संस्कृति-सभ्यता सदा पुष्पित- फलित होती रही है । नारी न केवल नारी है, किन्तु वह "न-अरि" के रूप में विश्वमंत्री व विश्व - वात्सल्य की प्रतीक है । संस्कृति की संरक्षिका है । जैन परम्परा की इसी पुण्य कड़ी में आज श्वेताम्बर खरतरगच्छ परम्परा में आर्या प्रवर्तनी श्रीसज्जन श्रीजी महाराज एक ऐसा ही उदात्त व्यक्तित्व है, जो भारतीय नारी और साध्वी परम्परा का गौरव कही जा सकती है। आपश्री के चतुर्मुखी व्यक्तित्व का दिग्दर्शन प्रस्तुत ग्रन्थ में अंकित है, अतः यहाँ पुनरुक्ति न करके हम इतना ही कहना चाहते हैं कि प्रवर्तिनी सज्जन श्रीजी का जीवन साधना की एक अखण्ड ज्योति है, जिसका प्रकाश अतीत को भी आलोकित करता है, वर्तमान दीपित है ही, और आने वाला कल भी उद्दीपित रहेगा । ऐसी पुण्यशालिनी संयम साधिका का दर्शन वन्दन एक महान पुण्य का प्रसंग है, इसका अभिनन्दन सत्य- शील-साधुता का अभिनन्दन है । आपश्री की दीक्षा के ४७ वर्ष सम्पन्न हो गये हैं, यह पाँचवा दशक पूर्ण होते ही अर्धशतक पूर्ण हो जायेगा । इसी शुभ अवसर को लक्ष्य में लेकर हमारे जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ श्री संघ ने आपश्री का अभिनन्दन करने का शुभ निश्चय किया है जो अवसर आज प्राप्त हो रहा है। हमें अत्यधिक आनन्दानुभूति हो रही है । सन्तों का अभिनन्दन किसी भौतिक उपहार से नहीं किया जाता, वे तो ज्ञान, संयम एवं तपस्या के जीवन्त रूप होते हैं, अतः उनका अभिनन्दन भी उसी के अनुरूप होना चाहिए । हमारी इस परिकल्पना को साकाररूप प्रदान किया है गुरुवर्याश्रीजी की प्रधानशिष्या विदुषी साध्वी श्री शशिप्रभा श्री, प्रियदर्शनाश्रीजी आदि साध्वी मंडल ने । उनकी उदात्त कल्पना Jain Education International ( ६ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy