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________________ का मैसूर में पदार्पण हुआ उस दिन से लगातार प्रवचन श्रवण का लाभ लेता रहा। आपने आत्मसिद्धि के बारे में बहुत ही अच्छा समझाया जिसे सुनकर मुझे लगा कि क्यों नहीं मैं अपने स्वभाव को बदलूँ । नित्य प्रवचन सुनने में मेरी भावना यही रहती कि कुछ न कुछ इसके बारे में चिन्तन करूँ और अपने जीवन में उतारूं तथा अपने जीवन को नया मोड प्रदान करूँ । समय ने पलटा खाया और यह बात मुझे भाई भी । नित्य रात्रि में एकान्त में बैठकर आपके मुखारविन्द से सुने हुए प्रवचनों पर गौर करता रहा और अपने कर्मों को भी हल्का बनाता रहा। अब मैं कभी कभी सोचता हूँ कि जो मुझे पहले इतना गुस्सा आता था आज वह कहाँ चला गया? यह सव पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों की ही देन है । पूज्य गुरुदेव का समय समय पर आशीषवर्षण होता रहे, यही भावना । - - मोतीलाल जैन (दरला), अशोका रोड, मैसूर-२. अभिनन्दन ः संयमी जीवन का परम श्रद्धेय श्रमणसंघ के सलाहकार मंत्री श्री सुमनकुमार जी म.सा. के ५० वें दीक्षा-दिवसोपलक्ष में “श्री सुमनमुनि दीक्षा स्वर्ण जयन्ति अभिनंदन ग्रंथ " प्रकाशन की योजना ज्ञातकर अतीव प्रसन्नता हुई । Jain Education International आदर्श संयमी जीवन से युक्त व्यक्तित्व का अभिनन्दन करके समाज अपने आप में गौरवान्वित होगा । महामना संतों के प्रति कृतज्ञता भाव का यही प्रतिफल होता है । श्रद्धेय मुनि श्री के सुदीर्घ संयमी जीवन से जन-जन प्रेरणा ग्रहण कर अपने आपको कृतकृत्य समझेगा । गुरुदेव श्री के सुदीर्घ चारित्रिक यात्रा की सत्कामना वंदन - अभिनंदन ! के साथ उनकी शारीरिक स्वस्थता की मंगल मनीषा व्यक्त करता हूँ। एन. सुगालचन्द जैन, मेनेजिंग ट्रस्टी भगवान् महावीर फाउंडेशन, चेन्नई - ६००००५ जैन समाज के ज्वाजल्यमान नक्षत्र कुसुमादपि कोमल एवं सरल मना, स्पष्टवक्ता, समभावी श्रद्धेय श्री सुमनमुनिजी म. श्रमणसंघ के ही नहीं अपितु जैन समाज के ज्वाजल्यमान नक्षत्र है । आपने जैन समाज की सभी सम्प्रदायों में ख्याति अर्जित की है, कर रहे हैं । दीक्षा - स्वर्ण जयन्ति के शुभ प्रसंग पर मैं कोटिशः वन्दन करता हूँ। आपकी प्रखर वाणी का तेज चतुर्दिक फैलता रहे - यही हार्दिक कामना है । जवाहरलाल बाघमार, चेन्नै - ७६ क्षेत्रीय प्रधान : श्री अ.भा. जैन रत्नहितैषी श्रावक संघ, (तमिलनाडु - संभाग ) एक आदर्श महापुरुष परम श्रद्धेय पंडित रत्न श्रमणसंघीय, सलाहकार मंत्री पूज्य श्री सुमनकुमारजी महाराज का व्यक्तित्व लिखना साधारण कार्य नहीं है। विद्वत्ता, अनुभव, स्पष्टता, निडरता, सूत्र विवेचन-शैली आदि गुणों के कारण आप जहाँ भी जाते हैं, लोग सहजता से उन्हें अपना लेते है, उनका आदर्श स्वीकार करते है । जिस प्रकार कीचड़ में रहकर भी कमल स्वच्छ रहता है और अपनी पहचान बनाता है, उसी तरह संसार सागर रूपी इस दुनिया के भीतर रहकर भी आपश्री ने एक महापुरुष युगपुरुष - आदर्शपुरुष के For Private & Personal Use Only ६१ www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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