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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि यथा नाम तथा गुण) | एवं सुखद अवसर हमारे श्रीसंघ को भी प्राप्त हुआ था, उस समारोह की छवि आज भी हृदय में अंकित है। हमारे महान् युगद्रष्टा संत श्री शुक्लचंद्रजी महाराज के | परिवार पर गुरुदेव का धर्ममय स्नेह अटूट है। प्रशिष्य एवं पंडितरल, पुण्यात्मा श्री महेन्द्रकुमार जी के अंततः इकबाल का एक शेर प्रस्तुत करते हुए अपनी महान् शिष्यरत्न परम श्रद्धेय श्री सुमनमुनि जी म. को लेखनी को विराम देता हूँ। सश्रद्ध वंदना। हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है। मेरे लिए यह शुभ एवं सुखद बात है कि मैं गुरुदेव बड़ी मुश्किल से होता है, चमन में दिदावर पैदा।। श्री के अभिनंदनार्थ कतिपय पंक्तियाँ लिख रहा हूँ। ___ मन का पंछी अतीत की ओर उड़ान भरने लगा है, 0 मांगीलाल जाँगड़ा नेत्रों के समक्ष १६६१ में नवांशहर में किया गया आपश्री मुनिरेड्डीपालयम्, बैंगलोर का वर्षावास उभर आया है। मन कितना प्रफुल्लित हो उठता था उस समय यह देखकर कि हमारी माताजी, | सुरभित हो ज्यों चन्दन परमश्रद्धेय गुरुदेव भी शुक्लचंद्रजी महाराज के चरणों की शुक्ल उद्यान के उत्तम पुष्प, इतिहास केसरी, धूलि अपने मस्तक पर लगाया करती थी। आज मेरा मन भी आपके चरणों की रज अपने माथे पर लगाने को सन्तशिरोमणि श्रद्धेय श्री सुमनमुनिजी महाराज के चरण कमलों में कोटिशः सादर वन्दन! उत्सुक है। आप यथानाम तथागुण हैं। आपके ज्ञान की गरिमा अवर्णनीय है। गुरुदेव! ___“दक्षिण की धरा आपके चरणों के संस्पर्श से पुलकित दीक्षा-स्वर्ण जयंति पर यही सद्कामना करता हूँ कि आप है, भाग्यवान है - दक्षिण का भू-भाग ! आपकी वाणी से सदैव स्वस्थ रहे और दीर्घातिदीर्घ आयु प्राप्त करे। जन-जन का मन धन्य हो रहा है। दक्षिण की धरा के भाग्य पर इतरावे या हम अपने भाग्य पर ! हमारा अपना, 0 वेदप्रकाश जैन हमारे पंजाब का, हमारे प्रातः स्मरणीय गुरुदेव युवाचार्य प्रधान : श्री जैनेन्द्र गुरुकुल, पंचकूला (हरियाणा) श्री शुक्लचन्दजी म. की भट्टी में तपा हुआ कुन्दन, शान्तमूर्ति गुरुदेव श्री महेन्द्रकुमारजी म. के कुशल शिल्पी हाथों से | गुरुदेव मेरे मैं उनका गढ़ा गया एक हीरा, अपने तप-संयम, गहन ज्ञान, ध्यान और विद्वत्ता की चमक-दमक से सदर प्रान्त में गरुदेवों के परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री की दीक्षा स्वर्ण-जयन्ति पर नाम को चार चाँद लगा रहा है, पंजाब की भी कीर्ति बढ़ा मैं अज्ञ क्या लिख सकता हूँ? कवि-लेखक भी लिख- रहा है, धन्य है आपके जनक एवं जननी एवं आपका लिख हारे किंतु गुरु-गुण लिख नहीं पाये ! मैं बस इतना तपोमय जीवन को। ही कह सकता हूँ- “गुरुदेव मेरे हैं, मैं उनका!" शारीरिक रूप से भले ही आप दूर हैं पर मानसिक गुरुदेवश्री का तप-त्याग-संयम विरल है। रूप से हमने सदैव अपने संग-संग पाया है। सबूत भी है; __ जैन दीक्षा की कठोर साधना नंगी तलवार पर चलने | समय-समय पर बरसती आपकी महती कृपा। कृपावर्षण के सदृश है। गुरुदेव श्री की जन्म-जयंति मनाने का शुभ | बना रहे इसी भाँति ! ४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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