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________________ अनुशासन एवं किसी को कोई कष्ट नहीं देना है । तप का अर्थ अपने द्वारा किये गये कुकृत्यों का पश्चाताप व शुद्धिकरण है । इस प्रकार का जीवन यापन करने की कला सिखाना ही वास्तविक धर्म है । " ग्राम, नगर, परिवार, समाज व राष्ट्र में धर्म जीवन का अभिन्न अंग बने इस हेतु तीन जैन महान् सिद्धांतों को सर्वोपयोगी बनाया जा सकता है। ये सिद्धांत है. १. अहिंसा २. अपरिग्रह एवं ३. अनेकान्त । वस्तुतः सिद्धांत वही है जो तीनों कालों में सर्वोपयोगी हो । अहिंसा का अर्थ है - सर्व प्राणिरक्षा व सद्भाव, सद्व्यवहार | अहिंसा निर्भयता व वीरता सिखाती है । अहिंसा से मैत्री, प्रमोद, कारुण्य, माध्यस्थ भाव का विस्तार होता है जहां ये सद्भाव रहता है वहां क्षमा, शांति व दया की अभिवृद्धि होती है। इसके विपरीत जहां हिंसा है वहां क्रूरता निर्दयता व स्वार्थभाव है वहां नीतिगत विचार नहीं रहता वहां अन्याय व जुल्म का बोलबाला है । ऐसे व्यवहारवालों को कभी शांति नहीं मिल सकती। पर पीड़ा अधर्म का हेतु है, वहां अशांति व दुःख ही बढ़ेगा । अपरिग्रहवाद अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखने की प्रेरणा देता है । संग्रहवृत्ति पाप है। आज जो देश संग्रहवृत्ति के शिकार हैं, वह उन्मत्त एवं सत्ता के उन्माद में है। दुनिया को नचाना व अपने वशीभूत बनाए रखने की कुचेष्टा में बड़े लोग एवं देश लगे हुए हैं। जिस देश में जीवन की आवश्यक वस्तुओं का सही वितरण है वहां छीना-झपटी व लूट-खसोट नहीं होती । परस्पर सहयोग एवं सद्भाव रहता है। वहीं शांति व व्यवस्था अक्षुण्ण बनी रहती है। अमरीका अपनी पूंजीवादी दृष्टिकोण से दुखी है। Jain Education International वंदन - अभिनंदन ! अनेकांत का सिद्धांत उदारता का संपोषक है, सर्वधर्म सद्भाव के सत्य-तथ्य को समझने की दृष्टि प्रदान करता है / सदाशयता प्रदान करना है । धर्मनिरपेक्षता के साथ सत्य-तथ्य-तत्त्व का समर्थक है । मेरा सो सत्य न मानकर सत्य सो मेरा का संवाहक है । इस तरह धर्म का वास्तविक स्वरूप उजागर करना है । जैन आगमों में जीवन जीने की कला का निर्देश है। यह समभाव, सहनशीलता की शिक्षा प्रदान करता है । इस प्रकार की शिक्षा इस महाश्रमण से मुझे निरंतर मिलती रहती है। उनके उद्बोधनों के माध्यम 1 पंडितरल मंत्री मुनिश्री सुमनकुमारजी म.सा. आगमज्ञ, सत्यनिष्ठ, यशस्वी - मनस्वी श्रमण हैं । स्पष्टवादिता के साथ निर्भीकता आपकी मौलिक विशेषता है । आगम रहस्यों के मर्मज्ञ एवं गहन सिद्धांतों को भी सरलतम शैली में समझाना पांडित्य व विद्वत्ता का परिचायक है । धर्म जीवन से जुड़े और हमारे आचरण से हमारे धर्म की महत्ता का अन्य लोग अनुसरण करे - ऐसा धर्माचरण ही आदर्श एवं अनुकरणीय होता है। श्रद्धेय मुनिश्रेष्ठ को वन्दन अभिनंदन ! हरकचंद ओस्तवाल उपाध्यक्ष : दक्षिण भारत जैन स्वाध्याय संघ, चेन्नई-७६ चारित्रात्मा पूज्य मुनिश्री सुमनकुमार जी म.सा. चारित्र आत्मा हैं उनके इस स्वर्णिम प्रसंग पर विधिवत् वंदना करते हुए उनके दीर्घायु होने की कामना करता हूँ । भंवरलाल नाहटा, कलकत्ता For Private & Personal Use Only 5 ४३ www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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